वीर रस – Veer Ras – परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण

Veer Ras – Veer Ras Ki Paribhasha

वीर रस – Veer Ras अर्थ–युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जाग्रत होता है, उससे ‘वीर रस’ की निष्पत्ति होती है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्साह की व्याख्या करते हुए लिखा है–”जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द, उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। यह उत्साह दान, धर्म, दया, युद्ध आदि किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।”

इस आधार पर चार प्रकार के वीर होते हैं–

  1. युद्धवीर,
  2. दानवीर,
  3. धर्मवीर,
  4. दयावीर।

वीर रस के अवयव/उपकरण 

  1. स्थायी भाव–उत्साह।
  2. आलम्बन विभाव–अत्याचारी शत्रु।
  3. उद्दीपन विभाव–शत्रु का पराक्रम, अहंकार, रणवाद्य, याचक का आर्तनाद, यश की इच्छा आदि।
  4. अनुभाव–रोमांच, गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, कम्प, धर्मानुकूल आचरण आदि।
  5. संचारी भाव–उग्रता, आवेग, गर्व, चपलता, धृति, मति, स्मृति, हर्ष, उत्सुकता, असूया आदि।

वीर रस के अवयव उदाहरण – Veer Ras Example In Hindi

क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रीछ अनी सर बट्टत।
लच्छन तच्छन रक्त किए दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत॥
मार पछारु पुकारे दुहूँ दल, रुण्ड झपट्टि दपट्टि लपट्टत।
रुण्ड लरै भट मत्थनि लुट्टत जोगिनि खप्पर ठट्टनि ठट्टत॥

स्पष्टीकरण–यहाँ पर लंका के युद्ध में रीछ–वानरों की सेना को देखकर रावण के युद्ध का वर्णन है। ‘रावण के हृदय में उत्साह’ स्थायी भाव है। ‘रीछ तथा वानर’ आलम्बन हैं। ‘वानरों की विभिन्न लीलाएँ’ उद्दीपन हैं। ‘नेत्रों का लाल होना, शत्रुओं के सिर को काटना’ आदि अनुभाव हैं। ‘उग्रता, अमर्ष’ आदि संचारी भाव हैं।

Ras in Hindi

हास्य रस – Hasya Ras – परिभाषा, भेद और उदाहरण

Hasya Ras – Hasya Ras Ki Paribhasha

हास्य रस – Hasya Ras अर्थ–वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि की विकृति को देखकर हृदय में विनोद का जो भाव जाग्रत होता है, उसे ‘हास’ कहा जाता है। यही ‘हास’ विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट होकर ‘हास्य रस’ में परिणत हो जाता है।

हास्य रस के अवयव/उपकरण :

  1. स्थायी भाव–हास।
  2. आलम्बन विभाव–विकृत वेशभूषा, आकार एवं चेष्टाएँ।
  3. उद्दीपन विभाव–आलम्बन की अनोखी आकृति, बातचीत, चेष्टाएँ आदि।
  4. अनुभाव–आश्रय की मुस्कान, नेत्रों का मिचमिचाना एवं अट्टहास।
  5. संचारी भाव–हर्ष, आलस्य, निद्रा, चपलता, कम्पन, उत्सुकता आदि।

हास्य रस के उदाहरण – Example Of Hasya Ras In Hindi

बिन्ध्य के बासी उदासी तपो ब्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
ढहैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू ! करुना करि कानन को पगु धारे॥

–तुलसीदास

स्पष्टीकरण–इस छन्द में स्थायी भाव ‘हास’ है। ‘रामचन्द्रजी’ आलम्बन हैं, ‘गौतम की स्त्री का उद्धार’ उद्दीपन है। ‘मुनियों की कथा आदि सुनना’ अनुभाव हैं तथा ‘हर्ष, उत्सुकता, चंचलता’ आदि संचारी भाव हैं। इसमें हास्य रस का आश्रय पाठक है तथा आलम्बन हैं–विन्ध्य के उदास वासी।

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करुण रस – Karun Ras, परिभाषा, भेद और उदाहरण

Karun Ras – Karun Ras Ki Paribhasha

करुण रस – karun ras अर्थ:–बन्धु–विनाश, बन्धु–वियोग, द्रव्यनाश और प्रेमी के सदैव के लिए बिछुड़ जाने से करुण रस उत्पन्न होता है। यद्यपि दुःख का अनुभव वियोग शृंगार में भी होता है, तथापि वहाँ मिलने की आशा भी बँधी रहती है। अतएव जहाँ पर मिलने की आशा पूरी तरह समाप्त हो जाती है, वहाँ ‘करुण रस’ होता है।

करुण रस के अवयव/उपकरण

  1. स्थायी भाव–शोक।
  2. आलम्बन विभाव–विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु।
  3. उद्दीपन विभाव–आलम्बन का दाहकर्म, इष्ट के गुण तथा उससे सम्बन्धित वस्तुएँ एवं इष्ट के चित्र का वर्णन।
  4. अनुभाव–भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना, रुदन. प्रलाप, मूर्छा, दैवनिन्दा, कम्प आदि।
  5. संचारी भाव–निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि।

करुण रस के उदाहरण – Karun Ras Example In Hindi

अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल,
हाय रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अनल अंगार,
वातहत लतिका वह सुकुमार,
पड़ी है छिन्नाधार !

– सुमित्रानन्दन पन्त

स्पष्टीकरण–इन पंक्तियों में ‘विनष्ट पति’ आलम्बन तथा ‘मुकुट का बँधना, हल्दी के हाथ होना, लाज के बोलों का न खुलना’ आदि उद्दीपन हैं। ‘वायु से आहत लतिका के समान नायिका का बेसहारे पड़े होना’ अनुभाव है तथा उसमें विषाद, दैन्य, स्मृति, जड़ता आदि संचारियों की व्यंजना है। इस प्रकार करुणा के सम्पूर्ण उपकरण और ‘शोक’ नामक स्थायी भाव इस पद्य को करुण रस–दशा तक पहुँचा रहे हैं।

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श्रृंगार रस – Shringar Ras – परिभाषा, भेद और

Shringar Ras : Sringar Ras Ki Paribhasha

श्रृंगार रस – Shringar Ras अर्थ–नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस की अवस्था को पहुँचकर आस्वादन के योग्य हो जाता है तो वह ‘श्रृंगार रस’ कहलाता है।

श्रंगार रस के अवयव (उपकरण)

  1. स्थायी भाव–रति।
  2. आलम्बन विभाव–नायक और नायिका।
  3. उद्दीपन विभाव–आलम्बन का सौन्दर्य, प्रकृति, रमणीक उपवन, वसन्त–ऋतु, चाँदनी, भ्रमर–गुंजन, पक्षियों का कूजन आदि।
  4. अनुभाव–अवलोकन, स्पर्श, आलिंगन, कटाक्ष, अश्रु आदि।
  5. संचारी भाव–हर्ष, जड़ता, निर्वेद, अभिलाषा, चपलता, आशा, स्मृति, रुदन, आवेग, उन्माद आदि।

श्रृंगार के भेद–श्रृंगार के दो भेद हैं–संयोग श्रृंगार तथा वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार। इनका विवेचन निम्नलिखित है
(i) संयोग श्रृंगार–संयोगकाल में नायक और नायिका की पारस्परिक रति को ‘संयोग श्रृंगार’ कहा जाता है। यहाँ संयोग का अर्थ है–सुख की प्राप्ति करना।

श्रृंगार रस के उदाहरण : Example Of Shringar Ras In Hindi

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥
राम को रूप निहारति जानकि कंकन के नग की परछाहीं।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं॥

तुलसीदास स्पष्टीकरण–इस पद में स्थायी भाव ‘रति’ है। ‘राम’ आलम्बन, ‘सीता’ आश्रय, नग में पड़नेवाला राम का ‘प्रतिबिम्ब’ उद्दीपन, ‘उस प्रतिबिम्ब को देखना, हाथ टेकना’ अनुभाव तथा ‘हर्ष एवं जड़ता’ संचारी भाव हैं। अतः इस पद में संयोग श्रृंगार है।

(ii) वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार–एक–दूसरे के प्रेम में अनुरक्त नायक एवं नायिका के मिलन के अभाव को ‘विप्रलम्भ शृंगार’ कहा जाता है।

उदाहरण–
रे मन आज परीक्षा तेरी !
सब अपना सौभाग्य मनावें।
दरस परस निःश्रेयस पावें।
उद्धारक चाहें तो आवें।
यहीं रहे यह चेरी !

– मैथिलीशरण गुप्त

स्पष्टीकरण–इसमें स्थायी भाव ‘रति’ है। ‘यशोधरा’ आलम्बन है। उद्धारक गौतम के प्रति यह भाव कि वे चाहें तो आवे’ उद्दीपन विभाव है। ‘मन को समझाना और उद्बोधन’ अनुभाव है, ‘यशोधरा का प्रणय’ मान है तथा मति, वितर्क और अमर्ष संचारी भाव हैं; अतः इस छन्द में विप्रलम्भ श्रृंगार है। ‘

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