Veer Ras – Veer Ras Ki Paribhasha
वीर रस – Veer Ras अर्थ–युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह जाग्रत होता है, उससे ‘वीर रस’ की निष्पत्ति होती है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उत्साह की व्याख्या करते हुए लिखा है–”जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द, उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। यह उत्साह दान, धर्म, दया, युद्ध आदि किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।”
इस आधार पर चार प्रकार के वीर होते हैं–
- युद्धवीर,
- दानवीर,
- धर्मवीर,
- दयावीर।
वीर रस के अवयव/उपकरण
- स्थायी भाव–उत्साह।
- आलम्बन विभाव–अत्याचारी शत्रु।
- उद्दीपन विभाव–शत्रु का पराक्रम, अहंकार, रणवाद्य, याचक का आर्तनाद, यश की इच्छा आदि।
- अनुभाव–रोमांच, गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, कम्प, धर्मानुकूल आचरण आदि।
- संचारी भाव–उग्रता, आवेग, गर्व, चपलता, धृति, मति, स्मृति, हर्ष, उत्सुकता, असूया आदि।
वीर रस के अवयव उदाहरण – Veer Ras Example In Hindi
क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लै कपि रीछ अनी सर बट्टत।
लच्छन तच्छन रक्त किए दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत॥
मार पछारु पुकारे दुहूँ दल, रुण्ड झपट्टि दपट्टि लपट्टत।
रुण्ड लरै भट मत्थनि लुट्टत जोगिनि खप्पर ठट्टनि ठट्टत॥
स्पष्टीकरण–यहाँ पर लंका के युद्ध में रीछ–वानरों की सेना को देखकर रावण के युद्ध का वर्णन है। ‘रावण के हृदय में उत्साह’ स्थायी भाव है। ‘रीछ तथा वानर’ आलम्बन हैं। ‘वानरों की विभिन्न लीलाएँ’ उद्दीपन हैं। ‘नेत्रों का लाल होना, शत्रुओं के सिर को काटना’ आदि अनुभाव हैं। ‘उग्रता, अमर्ष’ आदि संचारी भाव हैं।