हास्य रस – Hasya Ras – परिभाषा, भेद और उदाहरण

Hasya Ras – Hasya Ras Ki Paribhasha

हास्य रस – Hasya Ras अर्थ–वेशभूषा, वाणी, चेष्टा आदि की विकृति को देखकर हृदय में विनोद का जो भाव जाग्रत होता है, उसे ‘हास’ कहा जाता है। यही ‘हास’ विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट होकर ‘हास्य रस’ में परिणत हो जाता है।

हास्य रस के अवयव/उपकरण :

  1. स्थायी भाव–हास।
  2. आलम्बन विभाव–विकृत वेशभूषा, आकार एवं चेष्टाएँ।
  3. उद्दीपन विभाव–आलम्बन की अनोखी आकृति, बातचीत, चेष्टाएँ आदि।
  4. अनुभाव–आश्रय की मुस्कान, नेत्रों का मिचमिचाना एवं अट्टहास।
  5. संचारी भाव–हर्ष, आलस्य, निद्रा, चपलता, कम्पन, उत्सुकता आदि।

हास्य रस के उदाहरण – Example Of Hasya Ras In Hindi

बिन्ध्य के बासी उदासी तपो ब्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिबृन्द सुखारे॥
ढहैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू ! करुना करि कानन को पगु धारे॥

–तुलसीदास

स्पष्टीकरण–इस छन्द में स्थायी भाव ‘हास’ है। ‘रामचन्द्रजी’ आलम्बन हैं, ‘गौतम की स्त्री का उद्धार’ उद्दीपन है। ‘मुनियों की कथा आदि सुनना’ अनुभाव हैं तथा ‘हर्ष, उत्सुकता, चंचलता’ आदि संचारी भाव हैं। इसमें हास्य रस का आश्रय पाठक है तथा आलम्बन हैं–विन्ध्य के उदास वासी।

Ras in Hindi

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