Shant Ras – Shant Ras Ki Paribhasha
शान्त रस – Shant Ras अर्थ–तत्त्व–ज्ञान की प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर शान्त रस की उत्पत्ति होती है। जहाँ न दुःख है, न सुख, न द्वेष है, न राग और न कोई इच्छा है, ऐसी मन:स्थिति में उत्पन्न रस को मुनियों ने ‘शान्त रस’ कहा है।
शांत रस के अवयव (उपकरण )
- स्थायी भाव–निर्वेद।
- आलम्बन विभाव–परमात्मा का चिन्तन एवं संसार की क्षणभंगुरता।
- उद्दीपन विभाव–सत्संग, तीर्थस्थलों की यात्रा, शास्त्रों का अनुशीलन आदि।
- अनुभाव–पूरे शरीर में रोमांच, पुलक, अश्रु आदि।।
- संचारी भाव–धृति, हर्ष, स्मृति, मति, विबोध, निर्वेद आदि।
शांत रस के उदाहरण – Shant Ras ka Udaharan (Example Of Shant Ras In Hindi)
कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो।
श्री रघुनाथ–कृपालु–कृपा तें सन्त सुभाव गहौंगो।।
जथालाभ सन्तोष सदा काहू सों कछु न चहौंगो।
परहित–निरत–निरंतर मन क्रम बचन नेम निबहौंगो॥
– तुलसीदास
स्पष्टीकरण–इस पद में तुलसीदास ने श्री रघुनाथ की कृपा से सन्त–स्वभाव ग्रहण करने की कामना की है। ‘संसार से पूर्ण विरक्ति और निर्वेद’ स्थायी भाव हैं। ‘राम की भक्ति’ आलम्बन है। साधु–सम्पर्क एवं श्री रघुनाथ की कृपा उद्दीपन है। ‘धैर्य, सन्तोष तथा अचिन्ता ‘अनुभाव’ हैं। ‘निर्वेद, हर्ष, स्मृति’ आदि’ संचारी भाव हैं। इस प्रकार यहाँ शान्त रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।