NCERT Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 7 Weavers, Iron Smelters and Factory Owners (Hindi Medium)
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प्रश्न-अभ्यास
( पाठ्यपुस्तक से)
फिर से याद करें
प्रश्न 1.
यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?
उत्तर
यूरोप में कपड़ों की माँग
- मस्लिन (मलमल)
- कैलिको (सूती कपड़ा)
- शिंट्ज़ (छींट)
- जामदानी (बारीक मलमल)
प्रश्न 2.
जामदानी क्या है?
उत्तर
जामदानी
- जामदानी एक तरह का बारीक मलमल होता है, जिस पर करघे में सजावटी चिह्न बुने होते हैं।
- इसका रंग प्रायः सलेटी और सफेद होता है। आमतौर पर सूती और सोने के धागों का प्रयोग किया जाता है।
- बंगाल में ढाका और संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में लखनऊ जामदानी बुनाई के सबसे महत्त्वपूर्ण केंद्र थे।
प्रश्न 3.
बंडाना क्या है?
उत्तर
बंडाना
- बंडानी शब्द का प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है।
- यह शब्द हिंदी के बाँधना’ शब्द से निकला है। इस श्रेणी में चटक रंगों वाले ऐसी बहुत सारी किस्म के कपड़े आते थे, जिन्हें बाँधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था।
- बंडाना शैली के कपड़े अधिकांशत: राजस्थान और गुजरात में बनाए जाते थे।
प्रश्न 4.
अगरिया कौन होते हैं?
उत्तर
अगरिया-अगरिया लोहा बनाने वाले लोगों का एक समुदाय था, जो मध्ये भारत के गाँवों में रहते थे तथा लोहा गलाने की कला में निपुण थे।
प्रश्न 5.
रिक्त स्थान भरें :
(क) अंग्रेज़ी का शिट्ज़ शब्द हिंदी के ………………. शब्द से निकला है।
उत्तर
छींट,
(ख) टीपू की तलवार …………….. स्टील से बनी थी।
उत्तर
वुट्ज,
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात …………………. सदी में गिरने लगा।
उत्तर
उन्नीसवीं।
आइए विचार करें।
प्रश्न 6.
विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर
कपड़ों के नामों का इतिहास
- अंग्रेजी की शिट्ज़ शब्द हिंदी के छींट’ शब्द से निकला है। हमारे यहाँ छींट रंगीन फूल-पत्तियों वाले
छोटे छापे के कपड़ों को कहा जाता है। - बंडा! शब्द का प्रयोग गले या सिर पर बाँधने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है। यह शब्द हिंदी के बाँधना’ शब्द से निकला है।
- ‘मस्लिन’ (मलमल) शब्द का प्रयोग इराक के मोसूल शहर के आधार पर है। यूरोप के व्यापारियों ने इराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास बारीक बुनाई का कपड़ा देखा तो उसे ‘मस्लिन’ कहने लगे।
प्रश्न 7.
इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?
उत्तर
भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध
- इंग्लैंड में नए-नए कपड़ा कारखाने खुल रहे थे। अंग्रेज़ कपड़ा उत्पादक अपने देश में केवल अपना ही कपड़ा बेचना चाहते थे।
- इंग्लैंड के ऊन व रेशम निर्माता भारतीय कपड़े की लोकप्रियता से परेशान थे।
- अब सफेद मलमल या बिना माँड़ वाले कोरे भारतीय कपड़े पर इंग्लैंड में ही भारतीय डिजाइन छाप जाने लगे।
प्रश्न 8.
ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?
उत्तर
भारत के कपड़ा उत्पादकों पर प्रभाव|
- अब भारतीय कपड़े को यूरोप और अमरीका के बाजारों में ब्रिटिश उद्योगों में बने कपड़ों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती थी।
- भारत से इंग्लैंड को कपड़े का निर्यात कठिन हो गया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले कपड़े पर भारी सीमा शुल्क लगा दिए थे।
- ब्रिटिश और यूरोपीय कंपनियों ने भारतीय माल खरीदना बंद कर दिया और उसके एजेंटों ने तयशुदा आपूर्ति के लिए बुनकरों को पेशगी देना बंद कर दिया।
- इंग्लैंड में बने सूती कपड़े ने उन्नसवीं सदी की शुरुआत तक भारतीय कपड़े को अफ्रीका, अमरीका और यूरोप के परंपरागत बाजारों से बाहर कर दिया। इनकी वजह से हज़ारों बुनकर, लाखों सूत कातने वाली ग्रामीण महिलाएँ बेरोजगार हो गईं।
प्रश्न 9.
उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?
उत्तर
उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन
- औपनिवेशिक सरकार के नए वन कानूनों ने वनों को आरक्षित घोषित कर दिया। वनों में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगने के कारण लौह प्रगलकों के लिए कोयला बनाने के लिए लकड़ी मिलना बंद हो गयी।
- उन्नीसवीं सदी के अंत तक ब्रिटेन से लोहे और इस्पात का आयात होने लगा, जिसके कारण स्थानीय प्रगालकों द्वारा बनाए जा रहे लोहे की माँग कम होने लगी।
- कुछ क्षेत्रों में सरकार ने जंगलों में प्रवेश की अनुमति दे दी, लेकिन प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को बहुत भारी टैक्स देने पड़ते थे, जिससे उनकी आय में कमी आ गयी!
प्रश्न 10.
भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किने समस्याओं से जूझना पड़ा?
उत्तर
भारतीय वस्त्रोद्योग की शुरुआती समस्याएँ
- इस उद्योग को ब्रिटेन से आए सस्ते कपड़ों का मुकाबला करना पड़ा।
- अधिकतर देशों में सरकारें आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क लगा कर अपने उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बची रही थी, परंतु भारत में औपनिवेशिक सरकार ने भारतीय स्थानीय उद्योगों को ऐसी सुरक्षा नहीं दी।
- 1880 तक भारत के सूती कपड़ा पहनने वाले लगभग दो तिहाई लोग ब्रिटेन में बना कपड़ा पहनने लगे थे, जिससे हज़ारों बुनकर तथा लाखों सूत कातने वाली ग्रामीण महिलाएँ बेरोजगार हो गयीं।
प्रश्न 11.
पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली?
उत्तर
टिस्को को अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में मदद-
(i) सन् 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ। ब्रिटेन में उत्पादित इस्पात की खपत यूरोप में युद्ध की माँगों को पूरा करने के लिए होने लगी।
(ii) भारत आने वाले ब्रिटिश स्टील की मात्रा में भारी गिरावट आई और भारतीय रेलवे भी पटरियों की आपूर्ति के लिए टिस्को पर आश्रित हो गया।
(iii) औपनिवेशिक सरकार ने युद्ध लंबा खींचने की स्थिति में टिस्को को युद्ध के लिए गोलों के खोल और रेलगाड़ियों के पहिए बनाने का काम सौंप दिया।
(iv) औपनिवेशिक सरकार 1919 तक टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को खरीद लेती थी और कुछ समय बाद टिस्को समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में इस्पात का सबसे बड़ा कारखाना बन गया है।
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