NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 8 लौहतुला

We have given detailed NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 8 लौहतुला Questions and Answers will cover all exercises given at the end of the chapter.

Shemushi Sanskrit Class 9 Solutions Chapter 8 लौहतुला

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखतानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषा लिखत –

(क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्?
उत्तर:
वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत्-“यत्र पूर्व भोगः भुक्ताः तत्र विभवहीनः सन् न वसेत्।

(ख) स्वतुला याचमान जीर्णधनं श्रेष्ठी कि अकथयत्?
उत्तर:
सः अकथयत्-“भोः! नास्ति तुला सा तु मूषकैः भक्षिता”।

(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वार कया आच्छद्य गृहमागतः।
उत्तर:
जीर्णधनः गिरिगुहाद्वार महत्या शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।

(घ) स्नानान्तर पुत्र विषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिन किम् उवाच?
उत्तर:
वणिक्पुत्रः उवाच-‘” भोः! तव पुत्र नदीतटात् श्येनेन

(ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधन श्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ?
उत्तर:
धर्माधिकारिभिः तौ परस्परं तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोपितो।

प्रश्न 2.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणकुरुत –

(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन व्यचिन्तयत्।
उत्तर:
क: विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छान व्यचिन्तयत्?

(ख) श्रेष्ठिन: शिशु स्नानोपकरणमदाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः।
उत्तर:
श्रेष्ठिनः शिशु स्नानोपकरणमदाय केन सह प्रस्थितः?

(ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच- भो: अब्रह्ममण्यम् अब्रह्ममण्यम्।
उत्तर:
श्रेष्ठी उच्चस्वरेण किम् उवाच?

(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ।
उत्तर:
सभ्यः तौ परस्परं संबोध्य कथं सन्तोषितौ।

प्रश्न 3.
अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपुर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तम् पूरयत –

(क) यत्र देशे अथवा स्थाने ……… भोगः भुक्ता …………… विभवहीनः यः ……………. स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्त्रस्य …………. मूषकाः ………… तत्र श्येन: ………… हरेत् अत्र संशयः न।
उत्तर:
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः य वसेत् स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्त्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येन : बालक हरेत् अत्र संशयः न।

प्रश्न 4.
तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र –

(क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति
विहस्य, लौहसहस्त्रस्य, संबोध्य, आदाय
उत्तर:
लौहसहस्त्रस्य।

(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्यकारणम्
उत्तर:
सत्वरम्।

(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति
पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्
उत्तर:
स्ववीर्यंत

प्रश्न 5.
सन्धिना सन्धिविच्छेद वा रिक्तस्थनानि पूरयत –

(क) श्रेष्ठ्याह = ……………….. + आह
(ख) ……………… = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + …………
…………… = यथा + …….
(ङ) स्नानोपकरणम् = ………………. + उपकरणम्
(च) …………. = स्नान + अर्थम्
उत्तर:
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जित
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् – स्नान + उपकरणम्
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्

प्रश्न 6.
समस्तपदं विग्रह वा लिखत –

विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = …………..
(ख) …………. …………. = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = ………………
(घ) …………. ………… = विभवहीना:
उत्तर:
(क) स्नानस्य उपकरणम् = स्नानोपकरणम्
(ख) गिरेः गुहायता = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = धर्माधिकारी
(घ) विभवेन हीनाः = विभवहीना:

प्रश्न 7.
यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायता “लौहतुला” इति कथायाः सारांश संस्कृतभाषया लिखत –

वणिक्पुत्रः – स्नानार्थम्
लौहतुला – अयाचत्
वृत्तान्तं – ज्ञात्वा
श्रेष्ठिनं – प्रत्यागतः
गतः – प्रदानम्
उत्तर:
एक: वणिक्पुत्रः आसीत्। सः स्वलौहतुला एकस्य श्रेष्ठिनः गृहे निपेक्षभूतां कृत्वा देशान्तर गतः। किञ्चित् कालान्तर सः पुनस्तत्र प्रत्यागतः:। सः श्रेष्ठिनं स्वलौहतुला अयाचत्। श्रेष्ठि तं अकथयत्-“भोः नास्ति सा लौहतुला । सा तु मूषकैः खादिता”। वणिक्पुत्रः बुद्धिमान् आसीत्। स अजानत् यत् तुला दृश्ट्वा श्रेष्ठिनः मनसि लोभः सञ्जातः। अतः स उवाच-“भो: नास्ति तव दोषः, ईदृगेवायं संसारः।”

परं अहं स्नानार्थ नदी तट गन्तुं इच्छामि अतः त्वं स्वपुत्रं मया सह प्रेषय। तेन पेषितः। तत्र पुत्रं एकस्यां गिरिगुहायांनिक्षिप्य द्वारं शिलया आच्छाद्य गृह प्रत्यागतः। तेन पुत्रविषये पृष्टे सति स उवाच-“भो:! तव पुत्रः श्येनेन अपहृतः”। श्रेष्ठी उच्चस्वरेण आह-भोः! असत्यवादिन्! श्येनोऽपि क्वचित् बालं हर्त शक्नोति? अर्पय में बालम्। एवं विवदमानौ तौ राजकुलं गत्वा निवेदितवतौ। धर्माधि कारिणः सर्व वृत्तान्तं ज्ञात्वा तौ संबोध्य परस्परं तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।

व्याकरणात्मकः बोधः

1. पदपरिचयः-(क)

अधिष्ठाने – ‘अधि स्था’ से निष्पन्न शब्द अधिष्ठान, सप्तमी विभक्ति, एकवचन बस्ती में।
श्रेष्ठिन: – श्रेष्ठ्नि शब्द, षष्ठी विभक्ति, एकवचन। सेठ के।
एनम् – एतत् (पु.) शब्द का द्वितीया में ‘एनम्’ रूप। इसको। एतम् की जगह (एकवचन) प्रयुक्त।
अनेन – इदम् (पु.) शब्द तृतीया विभक्ति, एकवचन। इसके द्वारा।
भवता – भवत् (पु.) शब्द, तृतीया विभक्ति, एकवचन। आपके द्वारा।
मया – अस्मद् शब्द. तृतीया विभक्ति, एकवचन। मेरे द्वारा। त्वया-युष्मद् शब्द, तृतीया विभक्ति, एकवचन। तेरे द्वारा। (ख)
आसीत् – अस् + धातु. लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (था)

व्यचिन्तयत् – वि + चिन्त, लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (सोचा)
प्रेषय – प्र रु इष्, धातु. लोट्लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन, (भेजो)
कथ्यताम् – कथ् धातु (कर्मवाच्य में) लोट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (कहिए)
प्रोवाच – प्र + वच्, लिट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। (कहां)
निवेदयमास – नि + विद् + णिच्, लिट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। निवेदन किया गया।

2. प्रकृति प्रत्यय विभागः

भुक्ताः – भुज् + क्तः, बहुवचन
उपार्जिता – उप + अर्जु + क्त + टाप
भक्षिता – भक्ष् + क्तः + टाप
आच्छाद्य – आ + छद् + ल्यप्
पृष्टः – प्रच्छ + क्त:
हर्तुम् – हु + तुमुन्
अभिहितम् – अभि + धा + क्तः

संधि परिचयः

वि + अचिन्तयत् = व्यचिन्तयत् (यण् सन्धिः)
इति +आदिः = इत्यादिः (यण् सन्धिः)
मधु + अरिः . = मध्वरिः (यण् सन्धिः)
मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा (यण् सन्धिः)

यणसन्धिः – जब (इ, उ, ऋ) कार के सामने इनसे (भिन्न)स्वर आ जाए तोइ के स्थान पर यकार, 3 के स्थान पर वकार तथा ‘ऋ’ के स्थान पर कार हो जाता है। जैसे- उपर्युक्त उदाहरणों में देखा गया है। जैसे –
श्रेष्ठी + आह – श्रेष्ट्याह
संयोग-परिचय: –

गन्तुम् + इच्छन् = गन्तुमिच्छन्
स्वरपुरम् + आगत्य = स्वपुरमागत्य
शाश्वतम् + अस्ति = शाश्वतमस्ति
स्वपुत्रम् + उवाच = स्वपुत्रमुवाच
गम्यताम् + अनेन = गम्यतामनेन
स्नानोपकरणम् + आदाय = स्नानोपकरणमादाय
गृहम् + आगतः = गृहमागतः
सत्यम् + अभिहितम् = सत्यमभिहितम्
कथम् + एतत् = कथमेतत्

सन्धि व संयोग में भेद – दो अत्यन्त समीपवर्ती वर्गों के मेल से होने वाले परिवर्तन (विकार) को सन्धि कहा कहा जाता है। परन्तु उन्हीं दो निकटवर्ती वणों में सामीप्यतावश मेल तो होता है परन्तु कोई विकार नहीं होता तो वह मेल सन्धि नहीं संयोग (वणों का संयोग) कहलाता है। संयोग में पूर्ववर्ती हलन्त (व्यन्जन वर्ण)में उत्तरवर्ती स्वर आ मिलता है, कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे उपर्युक्त उदाहरणों में देखा गया है।

Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 8 लौहतुला Summary Translation in Hindi

आसीत्………….. व्यचिन्तयत्

सरलार्थ – किसी सथान पर जीर्णधन नामक कोई व्यापारी था। (व्यापार में) धनकी हानि होने के कारण प्रदेश (अन्य स्थान पर) जाने की इच्छा से उसने सोचा –

यत्र देशेऽथवा स्थाने भोग भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनों ये वसेत् से पुरुषाधमः।।

सरलार्थ – जिस देश अथवा स्थान पर अपनी शाक्ति अर्थात् परिश्रम से खूब भोग (ऐश – आराम) भोगे हों, उसी स्थान पर जो मनुष्य वैभन (धन दौलत) से हीन (निर्धन) होकर रहे वह नराधम (नीच) माना जाता है।

तस्य च गृहे ……….मूषकैर्भक्षिता” इति

सरलार्थ – उसके घर में (उसकों) पूर्वजोंसे चली आ रही एक लोहे की बनी तराजु थी। वह उस (तुला) को किसी सेठ के घर धरोहर रखकर प्रदेश चला गया। उसके पश्चात् बहुत समय त यथेच्छ से प्रदेश में घूम-फिर कर, फिर से अपने उसी नगर में आकर उस सेठ से बोला-“मुझे धरोहर रूप में रखी वह तुला दीजिए”। उसने कहा – “अरे! वह तुला (अब) नहीं है. तुम्हारी उस तुला को चूहे खा गए”।

जीर्णधन ने कहा ………………… प्रेषय” इति

सरलार्थ – जीर्णधन ने कहा – “सेठ जी! यदि उसे चूहे ख गए तो आपका कोई दोष नहीं है। यह संसार ऐसा ही है। यहां कुछ भी शाश्वत (सनातन) नहीं है। परन्तु मैं स्नान करने हेतु नदी पर जा रहा हूं तो तुम अपने इस बालक को, जिसका नाम धनदेव है, स्नानोपयोगी सामग्री लेकर मेरे साथ भेज दो”।

स श्रेष्ठी …………………….. सार्धम्” इति

सीलार्थ – वह सेठ अपने पुत्र से बोला – “पुत्र! ये तुम्हारे चाचा हैं जो स्नान हेतु(नदी पर) जा रहे हैं ,अत: तुम इनके साथ चले जाओं”।

अथासौ …………………. गृहमागतः

सालार्थ – इसके बाद वह बणिये का पुत्र स्नानोचित सामान्य लेकर प्रसन्न मन हुआ उस अतिथि (व्यापारी) के साथ चला गया। वैसा हो जाने पर वह व्यापारी स्नान करके उस बालक को पर्वत की एक गुफा में छिपाकर और उसके द्वारा को एक बड़ी शिला से ढककर शीघ्र घर आ गया।

पष्टश्च तेन…………….निवेदष्यिामि

सलारर्थ – उस वणिक् ने पूछा – “अर! अतिथि। बताओं मेरा वह पुत्र कहां है जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था?” वह बोला – उसे नदी के किनारे से एक बाज उठा ले गया। सेठ बोला अरे झूठे। क्या कहीं बाज भी बालक को उठाकर ले जा सकता है? तो तुम मेरे पुत्र को मुझे सोप दो नहीं तो मैं राजदरबार में तुम्हारी शिकायत करूँगा

स आह ………………………..अपहृतः! इति

सरलार्थ – वह(वणिक्) बोला – “अरे! सत्यवादी! जैसे एक बाज बच्चे को नहीं ले जो सकता, वैसे ही चूहं भी लोहे की बनी तराजू को नहीं खा सकते। इसलिए यदि तुम्हें अपना बालक चाहिए तो मुझे मेरी तराजू सौंप दो”।

अथ धमीधिकारिण …………………………समों भवति?

सरलार्थ – तब न्यायाधीशों ने उससे कहा – “अरे! वणिका! सेठ का पुत्र दे दो”। वह बोला – मैं क्या करता? मेरे देखते – देखते, बालक को दी के तट से बाज उठा ले गया। यह सुनकर उन (न्यायाधीशों) ने कहा – अर! आपके द्वारा कहा गया सच नहीं है – क्या कभी बाज भी बच्चे का अपहरण कर सकता है?

स आह……………. मद् वचः

सरलार्थ – उसने कहा – हे आदरणीयो! मेरी बात सुनें

तुला लौहसहस्वस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्नत्र हरेच्छ्येनो बालक नात्र संशयः।।

प्रसंग – उपरोक्त श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक “शेषुमी – प्रथम भागः” के “लौह तुला” नामक पाठ से अवतरित है जो विष्णु शर्मा रचित लोक प्रसिद्ध ग्रन्थ “पञ्चतन्त्रम्” से संग्रहीत है। जब वणिक् द्वारा धरोहर रखी तुला को संठ लोभवश देने से इन्कार कर देता है, कहता है – उसे तो चूह खा गए, तब वणिक् ने स्नान के बहाने उसके बच्चे को पर्वत् गुफा में छुपाकर घर आकर एसे उठा ले गया। यही बात जब उसने न्यायालय में कही तो उन सभी ने कहा कि “आप सत्य नहीं कह रहै” तब वह वणिक् कहता है

सरलार्थ – जहाँ एक टन (1000 कि, ग्रा.) की लौह तुला को चहे ख सकते हैं, हे राजन्! वहां पर बाज जी बालक को उठा सकता अर्थात् उपहरण कर सकता हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए।

ते प्राचु: ………………सन्तोषितौ

सरलार्थ – उन्होंने कहा (पूछा) वह कैसे? तब उस सेठ (वणिक् पुत्र) ने धर्माधिकारियों के आगे शुरू से लेकर (अन्य तक) सारा वृत्तान्त सुनाया। तब उन (ध माधिकारियों) ने हँसते हुए उन दोनों को आपस में समझा – बुझा कर, परस्पर तुला व बालक का विनिमय कराकर सन्तुष्ट कर दिया।

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