NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

पाठ से

प्रश्न 1. जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर छापा गया था ‘वे सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं, अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए, उनको बोलते, बातें करते देखो।’ उस फिल्म में अठहत्तर चेहरे थे। अर्थात् उस फिल्म (आलम आरा) में अठहत्तर कलाकार काम कर रहे थे।

प्रश्न 2. पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने आलमआरा फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया? विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अर्देशिर एम.ईरानी को प्रेरणा हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म देखकर मिली। इस फिल्म का नाम ‘शोबोट’ था। सवाक् फिल्म आलम आरा बनाने के लिए पारसी रंगमंच के नाटक को आधार बनाकर पटकथा तैयार की गई। उसके गीतों को भी इस फिल्म में ज्यों-का त्यों रखा गया।

प्रश्न 3. विट्ठल का चयन आलम आरा फिल्म के नायक के रूप हुआ लेकिन उन्हें हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया? विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
जिस समय ‘आलम आरा’ फिल्म बनने वाली भी उस समय विट्ठल प्रसिद्ध अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। उनका चयन फिल्म के नायक के लिए कर लिया गया पर उन्हें उर्दू बोलने में परेशानी होती थी, इसलिए उन्हें हटाया गया। विठ्ठल ने पुनः नायक बनने के लिए मुकदमा कर दिया। तत्कालीन सुप्रसिद्ध वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने उनका मुकदमा लड़ा। इस मुकदमें में विठ्ठल जीत गए और वे फिल्म के नायक पुनः बने।

प्रश्न 4. पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था? अर्देशिर ने क्या कहा? और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है? लिखिए।
उत्तर :
पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया तब सम्मानकर्ताओं ने उन्हें ‘ भारतीय सवाक् फिल्मों का पिता’ कहकर उनका सम्मान किया। इस अवसर पर निर्देशक ने कहा-“मुझे इतना बड़ा सम्मान देने की आवश्यकता नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।” इस प्रसंग में लेखक ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे अत्यंत विनम्र व्यक्ति थे। वे उस सवाक् सिनेमा के जनक थे, जिनकी उपलब्धि को भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के को भी अपनाना पड़ा, क्योंकि वहाँ से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।

पाठ से आगे

प्रश्न 1. मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उनमें अनेक परिर्वतन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर :
मूक सिनेमा अर्थात ऐसा सिनेमा जिसमें हम कलाकारों को अभिनय करते हुए देखते हैं, पर उनकी आवाज नहीं सुन पाते हैं। उसमें शारीरिक अभिनय की प्रधानता होती है। यही सिनेमा जब बोलने लगा तो उसमें अनेक परिवर्तन हुए। अभिनेता, दर्शक और तकनीकी दृष्टि से जो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए वे निम्नलिखित हैं

अभिनेता – मूक फिल्मों में काम करने वाले नायकों में पहलवान जैसा शरीर होना, स्टंट तथा उछल-कूद करने की क्षमता पर ध्यान देकर चुना जाता था। किंतु सवाक् सिनेमा में इन्हीं अभिनेताओं को संवादकला में निपुण होना आवश्यक हो गया । इसके अलावा गायन की योग्यता रखने वाले अभिनेताओं की कद्र बढ़ गई।

दर्शक – यूँ तो उस समय मूक सिनेमा भी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर था और दर्शक उन्हें पसंद भी कर रहे थे, किंतु सवाकु फिल्मों में लोगों की रुचि क्रमशः बढ़ती गई। इसमें उमड़ती भीड़ को नियंत्रित करना पुलिस के लिए। कठिन होता था। सवाक् सिनेमा दर्शकों के लिए नया अनुभव था।।

तकनीकी दृष्टि – सिनेमा के सवाक् होने से उसके तकनीकी स्वरूप में भी पर्याप्त परिवर्तन आ गया। पहले शूटिंग जहाँ दिन में ही पूरी कर ली जाती थी, वहीं अब रात में भी शूटिंग होने लगी। सिनेमा में आवाज का होना अलग प्रभाव छोड़ता था। हिंदी-उर्दू के मेल वाली ‘हिंदुस्तानी भाषा’ की लोकप्रियता बढ़ी। वाद्ययंत्रों और गीत-संगीत का प्रयोग भी बढ़ गया।

प्रश्न 2. डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुंह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
उत्तर :
कभी-कभी सवाक् सिनेमा में अभिनय करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियाँ संवाद बोलते तो हैं पर उनकी अपनी आवाज नहीं होती है। अर्थात वे किसी और के बोले संवाद पर अभिनय करते हैं। ऐसी फिल्में डब फिल्में कहलाती हैं। कभी-कभी फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण यह है कि अभिनय और संवाद संयोजन में कमी, संयोजनकर्ता का पूरी तरह दक्ष न होना, डब आवाज तथा अभिनय करने वाले के मुँह खोलने-बंद करने की असमान गति तथा अभिनेता की तालमेल बिठाने की असफलता के कारण ऐसा हो जाता है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1. किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।
उत्तर :
छात्र स्वयं अभिनय करके अनुभव करें।

प्रश्न 2. मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?
उत्तर :
टेलीविजन की आवाजे बंद करके हम जब फिल्म देखते हैं और कहानी का अनुमान लगाते हैं तो पाते हैं कि संवाद और दृश्य एक-दूसरे के बिना-अधूरे से लगते हैं। संवाद के अभाव में फिल्म की कहानी समझ पाना कितना कठिन लगता है। वास्तव में संवाद और दृश्य एक-दूसरे के पूरक बनकर दृश्य या फिल्म को मनोरंजक बनाते हैं। इससे दर्शकों की एकता भी फिल्म में बनी रहती है। दृश्यों में संवाद की आवश्यकता के कारण ही मूक सिनेमा की लोकप्रियता के युग में भी सवाक् फिल्में इतनी लोकप्रिय हुईं कि दर्शकों की भीड़ को सँभालना मुश्किल हो गया।

भाषा की बात

1. सवाक् शब्द वाक् के पहले ‘स’ लगाने से बना है। ‘स’ उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
उत्तर :
NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 11 1
2. उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। इन दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिंदी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं- अ/अन, नि, दु, काकु, स/सु, अध, बिन, औ आदि। पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं
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इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।

उत्तर :
जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ से अन्य उदाहरण
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