NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि

We have given detailed NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि Questions and Answers will cover all exercises given at the end of the chapter.

NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 1 सुभाषितानि

अभ्यास के प्ररनौं के उत्तर

प्रश्न: 1.
सर्वान् श्लोकान् सस्वरं गायत।(सभी श्लोकों को स्वर से गाएँ)
उत्तर
छात्राः स्वयं गायन्तु।

प्रश्न: 2.
यथायोग्यं श्लोकांशान् मेलयत
(क) – (ख)
धनधान्यप्रयोगेषु – नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्।
विस्मयो न हि कर्तव्यः – त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
सत्येन धार्यते पृथ्वी – बहुरत्ना वसुन्धरा।
सद्भिर्विवादं मैत्री च – विद्यायाः संग्रहेषु च।
आहारे व्यवहारे च – सत्येन तपते रविः।
उत्तर
(क) – (ख)
धनधान्यप्रयोगेषु – नासद्भिः किञ्चिदाचरेत।
विस्मयो न हि कर्तव्यः – त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
सत्येन धार्यते पृथ्वी – बहुरत्ला वसुन्धरा।
सद्भिर्विवादं मैत्री – विद्यायाः संग्रहेषु च।
आहारे व्यवहारे च – सत्येन तपते रविः ।

प्रश्न: 3.
एकपदेन उत्तरत
(क) पृथिव्यां कति रत्नानि ?
उत्तर
त्रीणि।

(ख) मूढैः कुत्र रत्नसंज्ञा विधीयते ?
उत्तर
पाषाणखण्डेषु।

(ग) पृथिवी केन धार्यते ?
उत्तर
सत्येन।

(घ) कैः सङ्गतिं कुर्वीत ?
उत्तर
सद्भिः

(ङ) लोके वशीकृतिः का ?
उत्तर
क्षमा।

प्रश्न: 4.
रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) सत्येन वाति वायुः।
(ख) सद्भिः एव सहासीत।
(ग) वसुन्धरा बहुरला भवति।
(घ) विद्यायाः संग्रहेषु त्यक्तलजः सुखी भवेत्।
(ङ) सद्भिः मैत्रीं कुर्वीत।
उत्तर
(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) केन वाति वायुः ?
(ख) कैः एव सहासीत ?
(ग) का बहुरत्ना भवति ?
(घ) कस्याः संग्रहेषु त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ?
(ङ) कैः सह मैत्री कुर्वीत ?

प्रश्न: 5.
प्रश्नानामुत्तराणि लिखत

(क) कुत्र विस्मयः न कर्तव्यः ?
उत्तर
दाने, तपसि, शौर्ये, विज्ञाने, विनये, नये च विस्मयः न कर्तव्यः।

(ख) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि कानि ?
उत्तर
पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलम्, अन्नं सुभाषितं च सन्ति।

(ग) त्यक्तलजः कुत्र सुखी भवेत् ?
उत्तर
धनधान्य-प्रयोगेषु, विद्यायाः संग्रहेषु, आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।

प्रश्नः 6.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा लिङ्गानुसारं लिखत
रत्नानि, वसुन्धरा, सत्येन, सुखी, अन्नम्, वह्निः, रविः, पृथ्वी, सङ्गतिम्।
NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि 1
उत्तर
NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि 2

प्रश्न: 7
अधोलिखितपदेषु धातवः के सन्ति ?
पदम् – धातुः
कर्तव्यः …………..
पश्य …………..
भवेत् …………..
स्थितः …………..
उत्तर
NCERT Solutions for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि 3

बहुविकल्पी प्रश्न

(i) पृथिव्यां कति रत्नानि ?
(A) द्वे
(B) त्रीणि
(C) चत्वारि
(D) पञ्च।
उत्तर
(B) त्रीणि

(ii) मूढः कुत्र रत्नसंज्ञा विधीयते ?
(A) खण्डेषु
(B) रत्नेषु
(C) पाषाणेषु.
(D) पाषाणखण्डेषु ।
उत्तर
(D) पाषाणखण्डेषु ।

(iii) पृथिवी केन धार्यते ?
(A) असत्येन
(B) सत्येन
(C) बलेन
(D) संकल्पेन।
उत्तर
(B) सत्येन

(iv) कैः सङ्गतिं कुर्वीत ?
(A) सद्भिः
(B) असद्भिः
(C) कुजनैः
(D) दुर्जनैः
उत्तर
(A) सद्भिः

(v) लोके वशीकृतिः का?
(A) रमा
(B) मक्षिका
(C) क्षमा
(D) मक्षिका।
उत्तर
(C) क्षमा

(vi) केन वाति वायुः ?
(A) सत्येन
(B) बलेन
(C) संकल्पेन
(D) असत्येन।
उत्तर
(A) सत्येन

(vii) कैः एव सहासीत ?
(A) कुजनैः
(B) सद्भिः
(C) दुर्जनैः
(D) कदापि।
उत्तर
(B) सद्भिः

(viii) का बहुरत्ला भवति ?
(A) वसुन्धरा
(B) लक्ष्मी
(C) सरस्वती
(D) दुर्गा ।
उत्तर
(A) वसुन्धरा

(ix) कस्याः संग्रहेषु त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ?
(A) कुविद्यायाः
(B) अविद्यायाः
(C) विद्यायाः
(D) सद्यायाः।
उत्तर
(C) विद्यायाः

(x) कैः सह मैत्री कुर्वीत ?
(A) दुर्जनः
(B) कुजनैः
(C) खलैः
(D) सद्भिः
उत्तर
(D) सद्भिः

Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि Summary Translation in Hindi

श्लोकों का हिन्दी में सरलार्थ

1. पृथिव्यां त्रीणि रत्लानि जलमन्नं सुभाषितम्
मूढः पाषाणखण्डेषु रलसंज्ञा विधीयते॥ 1 ॥

शब्दार्थाः
पृथिव्याम् = धरती पर।
सुभाषितम् = सुन्दर वचन।
मूढः = मूर्यों के द्वारा।
पाषाणखण्डेषु = पत्थर के टुकड़ों में।
रत्नसंज्ञा = रत्ल का नाम।
विधीयते = किया जाता

सरलार्थ:-धरती पर तीन ही रत्न हैं-
1. जल
2. अन्न तथा
3 कवियों के सुन्दर वचन। मूखों के द्वारा ही पत्थर के टुकड़ों में रत्न का नाम किया जाता है।

भावार्थ:-श्लोक का भाव है कि पृथ्वी पर वास्तविक रत्न तो जल, अन्न तथा कवियों के सुन्दर वचन ही है, जलऔर अन्न से मनुष्यों का जीवन चलता है तथा कवियों के सुभाषित से जीवन सुन्दर बनता है। हीरे, मोती आदि तो पत्थर के टुकड़े हैं। इनसे किसी का जीवन सुन्दर नहीं बनता। अतः इन पत्थर के टुकड़ों को जो लोग रत्न का नाम देते हैं, वे तो मूर्ख ही हैं।

2.सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।
सत्येन वाति वायुश्च सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्॥ 2 ॥

शब्दार्थाः
धार्यते = धारण किया जाता है।
पृथ्वी = धरती।
तपते = जलता है, प्रकाशित होता है।
रविः = सूर्य ।
वाति = बहता है/बहती है।
वायुश्च (वायुः + च) = वायु भी।
सर्वम् = सब कुछ।
प्रतिष्ठितम् = स्थित है।

सरलार्थ:-सत्य के द्वारा धरती को धारण किया जाता है। सत्य के बल से ही सूर्य प्रकाशित होता है। वायु भी सत्य से ही बहती है। इस प्रकार सब कुछ सत्य पर ही स्थित है।

भावार्थ:- इस श्लोक में सत्य का महत्व बताया गया है। सत्य के बल पर कठिन से कठिन कार्य किए जा सकते हैं। यह पृथ्वी सत्य के बल पर ही सारे प्राणियों तथा जड़ पदार्थों को धारण कर रही है। सूर्य सत्य के बल पर ही निरन्तर जलता रहता है। वायु भी सत्य के बल पर निरन्तर बहती रहती है। इस प्रकार सारा ब्रह्माण्ड सत्य पर ही टिका हुआ है। अत: सत्य को जीवन में अवश्य ही अपनाना चाहिए।

3.दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥ 3॥

शब्दार्था:
दाने = दान में।
तपसि = तप में।
शायें = बल में।
विज्ञाने = विज्ञान में, विशेष ज्ञान में।
विनय = विनम्रता में।
नये = नीति में।
विस्मयो न (विस्मयः + न) = आश्चर्य नहीं, अहंकार नहीं।
कर्तव्यः = करना चाहिए।
बहुरना = बहुतरत्नों वाली।
वसुन्धरा = धरती।

सरलार्थ:-दान, तप, बल, विशेष ज्ञान, विनयशीलता, तथा नीति में (किसी को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा देखकर)
आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह धरती बहुत रत्नों वाली है।

भावार्थ:-इस धरती पर एक-से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, बलवान, ज्ञानी, विनयशील तथा नीतिवान् लोग मिल जाते हैं। इनको देखकर साधारण मनुष्य को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि यह धरती अनेक प्रकार के रत्नों से भरी पड़ी है। दानी, तपस्वी आदि को भी रत्न ही समझना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति स्वयं ही दानी, तपस्वी, बलवान्, जानी, विनम्र अथवा नीतिमान् है तो उसे अपने इन गुणों पर कोई अहंकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि धरती पर और भी बहुत से दानवीर, तपस्वी आदि विद्यमान हैं।

4. सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।
सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥ 4 ॥

शब्दार्थाः-
सद्भिरेव (सद्भिः + एव) = सज्जनों के साथ ही।
सहासीत (सह + आसीत) = साथ बैठना चाहिए।
कुर्वीत = करना चाहिए।
सङ्गतिम् = संगति को।
सद्भिर्विवादम् (सद्भिः + विवादम्) = सज्जनों के साथ झगडा/विवाद।
मैत्रीम् = मित्रता को।
नासद्भिः (न + असद्भिः) = असज्जनों के साथ नहीं, दुष्टों के साथ नहीं।
किञ्चित् = कुछ भी, किसी भी प्रकार का।
आचरेत् = आचरण/व्यवहार करना चाहिए।

सरलार्थ:- सदा सज्जनों के साथ ही बैठना चाहिए, सज्जनों की संगति करनी चाहिए, सज्जनों के साथ ही झगड़ा करना चाहिए, सज्जनों के साथ ही मित्रता करनी चाहिए। असज्जनों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए।

भावार्थ:- एक अच्छा आदर्श व्यक्ति बनने के लिए यह आवश्यक है कि वह सदा सज्जनों के साथ ही अपना हर तरह का व्यवहार करे। उठना-बैठना, खाना-पीना, हँसना-बोलना, खेलना-झगड़ना, दोस्ती-दुश्मनी सभी प्रकार की संगति सज्जनों

के साथ ही करनी चाहिए। दुष्टों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए, उनकी संगति से सदा दूर ही रहना चाहिए।

6.धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलग्जः सुखी भवेत्॥5॥

शब्दार्था:-
धनधान्य-प्रयोगेषु = धनधान्य के प्रयोग में। व्यवहार में।
विद्यायाः = विद्या के, ज्ञान के।
संग्रहेषु = संग्रहों में, अर्जन करने में, संचय करने में, इकट्ठा करने में।
आहारे व्यवहारे = आहार-व्यवहार में।
त्यक्तलजः = संकोच/भीरुता को छोड़नेवाला।

सरलार्थ:- धनधान्य के प्रयोग में, विद्या के अर्जन करने में तथा आहार-व्यवहार करने में संकोच को छोड़नेवाला सुखी रहता है।

भावार्थ:- जो मनुष्य धन-सम्पत्ति के लेन-देन में कभी संकोच नहीं करता, ज्ञान अर्जित करने में सदा उत्साहित रहता है तथा खाने-पीने एवं दुसरे प्रकार के सामाजिक कार्यों में डर-भय छोड़कर व्यवहार करता है, वह सदा सुखी रहता है। जो मनुष्य ऐसा व्यवहार नहीं करते उन्हें बाद में पछताना पड़ता है।

7. क्षमावशीकृतिलोंके क्षमया किं न साध्यते।
शान्तिखड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः ॥ 6 ॥

शब्दार्था:-
क्षमावशीकृतिलोंके (क्षमावशीकृतिः + लोके) = संसार में क्षमा (सबसे बड़ा) वशीकरण है।
क्षमया = क्षमा द्वारा।
किं न साध्यते = क्या सिद्ध नहीं किया जाता।
शान्तिखड्गः = शान्ति रूपी तलवार करे – हाथ में।
यस्य = जिसके।
किं करिष्यति = क्या करेगा/क्या बिगाड़ेगा।
दुर्जनः = दुर्जन, दुष्ट मनुष्य।

सरलार्थ:- संसार में क्षमा ही सबसे बड़ा वशीकरण अर्थात् दुसरों को अपने वश में करने का साधन है। क्षमा द्वारा संसार में कौन-सा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता ? अर्थात् सभी कार्य क्षमा से सफल हो जाते हैं। जिस मनुष्य के हाथ में शान्ति की तलवार हो, दुर्जन उसका क्या बिगाड़ेगा ? अर्थात् दुर्जन उसका | कुछ भी अनर्थ नहीं कर सकता।

भावार्थ:- इस श्लोक में क्षमा के महत्व को समझाया गया है। संसार में यदि हम दूसरों को अपना बनाना चाहते हैं-उन्हें अपने वश में करना चाहते हैं तो क्षमा से बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं, क्योंकि क्षमा ही सबसे बड़ा वशीकरण है। शान्त स्वभाव, क्षमाशील मनुष्य का दुर्जन भी कुछ अपकार नहीं कर सकता।

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