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करुण रस – Karun Ras, परिभाषा, भेद और उदाहरण

Karun Ras – Karun Ras Ki Paribhasha

करुण रस – karun ras अर्थ:–बन्धु–विनाश, बन्धु–वियोग, द्रव्यनाश और प्रेमी के सदैव के लिए बिछुड़ जाने से करुण रस उत्पन्न होता है। यद्यपि दुःख का अनुभव वियोग शृंगार में भी होता है, तथापि वहाँ मिलने की आशा भी बँधी रहती है। अतएव जहाँ पर मिलने की आशा पूरी तरह समाप्त हो जाती है, वहाँ ‘करुण रस’ होता है।

करुण रस के अवयव/उपकरण

  1. स्थायी भाव–शोक।
  2. आलम्बन विभाव–विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु।
  3. उद्दीपन विभाव–आलम्बन का दाहकर्म, इष्ट के गुण तथा उससे सम्बन्धित वस्तुएँ एवं इष्ट के चित्र का वर्णन।
  4. अनुभाव–भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना, रुदन. प्रलाप, मूर्छा, दैवनिन्दा, कम्प आदि।
  5. संचारी भाव–निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि।

करुण रस के उदाहरण – Karun Ras Example In Hindi

अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल,
हाय रुक गया यहीं संसार,
बना सिंदूर अनल अंगार,
वातहत लतिका वह सुकुमार,
पड़ी है छिन्नाधार !

– सुमित्रानन्दन पन्त

स्पष्टीकरण–इन पंक्तियों में ‘विनष्ट पति’ आलम्बन तथा ‘मुकुट का बँधना, हल्दी के हाथ होना, लाज के बोलों का न खुलना’ आदि उद्दीपन हैं। ‘वायु से आहत लतिका के समान नायिका का बेसहारे पड़े होना’ अनुभाव है तथा उसमें विषाद, दैन्य, स्मृति, जड़ता आदि संचारियों की व्यंजना है। इस प्रकार करुणा के सम्पूर्ण उपकरण और ‘शोक’ नामक स्थायी भाव इस पद्य को करुण रस–दशा तक पहुँचा रहे हैं।

Ras in Hindi

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