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Kabir Ki Sakhi Class 10 Summary in Hindi – कबीर की साखी अर्थ सहित

Kabir Ki Sakhi Class 10 Summary in Hindi

कबीर दास का जीवन परिचय – Kabir Das Ka Jivan Parichay: संत कबीर दास प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों की सूची में सबसे प्रथम स्थान पर आते हैं। उनका जन्म (kabir das ka janm) वाराणसी में हुआ। हालाँकि इस बात की पुष्टि नही की जा सकी, परन्तु ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म सन् 1400 के आसपास हुआ। उनके माता-पिता के बारे में भी यह प्रमाणित नहीं है कि उन्होनें कबीरदास को जन्म दिया या केवल उनका पालन-पोषण किया। कबीर ने खुद को अपनी कई रचनाओं में जुलाहा कहा है।

उन्होने कभी विधिवत शिक्षा नहीं प्राप्त की, किंतु ज्ञानी और संतों के साथ रहकर कबीर ने दीक्षा और ज्ञान प्राप्त किया। वह धार्मिक कर्मकांडों से परे थे। उनका मानना था कि परमात्मा एक है, इसलिए वह हर धर्म की आलोचना और प्रशंसा करते थे। उन्होने कई कविताएं गाईं, जो आज के सामाजिक परिदृश्य में भी उतनी ही सटीक हैं, जितनी कि उस समय।

उन्होने अपने अतिंम क्षण मगहर में व्यतीत किए और वहीं अपने प्राण त्यागे। कबीर दास की रचनाएँ (Kabir Das Ki Rachnaye) कबीर ग्रंथावली में संग्रहीत है। कबीर की कई रचनाएं गुरुग्रंथ साहिब में भी पढ़ी जा सकती हैं।

kabir ki sakhi class 10 – कबीर की साखी

ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

कबीर की साखी अर्थ सहित- Kabir Ke Dohe Sakhi Meaning in Hindi

ऐसी बाँणी बोलिए मन का आपा खोई।
अपना तन सीतल करै औरन कैं सुख होई।।

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने वाणी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया है। महाकवि संत कबीर जी ने अपने दोहे में कहा है कि हमें ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए, जिससे हमें शीतलता का अनुभव हो और साथ ही सुनने वालों का मन भी प्रसन्न हो उठे। मधुर वाणी से समाज में प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनों से हम एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। इसलिए हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दूसरों को तो प्रसन्न करता ही है और आपको भी सुख की अनुभूति कराता है।

कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥

कबीर की साखी भावार्थ : जिस प्रकार हिरण की नाभि में कस्तूरी रहती है, परन्तु हिरण इस बात से अनजान उसकी खुशबू के कारण उसे पूरे जंगल में इधर-उधर ढूंढ़ता रहता है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हम उन्हें मंदिर-मस्जिद, पूजा-पाठ में ढूंढ़ते हैं। जबकि ईश्वर तो स्वयं कण-कण में बसे हुए हैं, उन्हें कहीं ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं। बस ज़रूरत है, तो खुद को पहचानने की।

कस्तूरी :- कस्तूरी एक तरह का पदार्थ होता है, जो नर-हिरण की नाभि में पाया जाता है। इसमें एक प्रकार की विशेष खुशबू होती है। इसे इंग्लिश में Deer musk बोलते हैं। इसका इस्तेमाल परफ्यूम तथा मेडिसिन (दवाइयाँ) बनाने में होता है। यह बहुत ही महंगा होता है।

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटी गया दीपक देख्या माँहि॥

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर जी कह रहे हैं कि जब तक मनुष्य में अहंकार (मैं) रहता है, तब तक वह ईश्वर की भक्ति में लीन नहीं हो सकता और एक बार जो मनुष्य ईश्वर-भक्ति में पूर्ण रुप से लीन हो जाता है, उस मनुष्य के अंदर कोई अहंकार शेष नहीं रहता। वह खुद को नगण्य समझता है। जिस प्रकार दीपक के जलते ही पूरा अंधकार मिट जाता है और चारों तरफ प्रकाश फ़ैल जाता है, ठीक उसी प्रकार, भक्ति के मार्ग पर चलने से ही मनुष्य के अंदर व्याप्त अहंकार मिट जाता है।

सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।

कबीर की साखी भावार्थ :  प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर ने समाज के ऊपर व्यंग्य किया है। वह कहते हैं कि सारा संसार किसी झांसे में जी रहा है। लोग खाते हैं और सोते हैं, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं है। वह सिर्फ़ खाने एवं सोने से ही ख़ुश हो जाते हैं। जबकि सच्ची ख़ुशी तो तब प्राप्त होती है, जब आप प्रभु की आराधना में लीन हो जाते हो। परन्तु भक्ति का मार्ग इतना आसान नहीं है, इसी वजह से संत कबीर को जागना एवं रोना पड़ता है।

बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।

कबीर की साखी भावार्थ : जिस प्रकार अपने प्रेमी से बिछड़े हुए व्यक्ति की पीड़ा किसी मंत्र या दवा से ठीक नहीं हो सकती, ठीक उसी प्रकार, अपने प्रभु से बिछडा हुआ कोई भक्त जी नहीं सकता। उसमें प्रभु-भक्ति के अलावा कुछ शेष बचता ही नहीं। अपने प्रभु से बिछड़ अगर वो जीवित रह भी जाते हैं, तो अपने प्रभु की याद में वो पागल हो जाते हैं।

निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ॥

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में संत कबीर दास जी के अनुसार जो व्यक्ति हमारी निंदा करते हैं, उनसे कभी दूर नहीं भागना चाहिए, बल्कि हमें हमेशा उनके समीप रहना चाहिए। जैसे हम किसी गाय को अपने आँगन में खूँटे से बांधकर रखते हैं, ठीक उसी प्रकार ही हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास रखने का कोई प्रबंध कर लेना चाहिए। जिससे हम रोज उनसे अपनी बुराईयों के बारे में जान सकें और अपनी गलतियाँ दोबारा दोहराने से बच सकें। इस प्रकार हम बिना साबुन और पानी के ही खुद को निर्मल बना सकते हैं।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥

कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत पाठ कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कबीर के अनुसार सिर्फ़ मोटी-मोटी किताबों को पढ़कर किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने से भी कोई पंडित नहीं बन सकता। जबकि ईश्वर-भक्ति का एक अक्षर पढ़ कर भी लोग पंडित बन जाते हैं। अर्थात किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी होना आवश्यक है, नहीं तो कोई व्यक्ति ज्ञानी नहीं बन सकता।

हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि॥

कबीर की साखी भावार्थ : सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए, हमें अपनी मोह-माया का त्याग करना होगा। तभी हम सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। कबीर के अनुसार, उन्होंने खुद ही अपने मोह-माया रूपी घर को ज्ञान रूपी मशाल से जलाया है। अगर कोई उनके साथ भक्ति की राह पर चलना चाहता है, तो कबीर अपनी इस मशाल से उसका घर भी रौशन करेंगे अर्थात अपने ज्ञान से उसे मोह-माया के बंधन से मुक्त करेंगे।

शब्दार्थ :
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