NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 10 Light Reflection and Refraction (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 10 Light Reflection and Refraction (Hindi Medium)

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Chapter 10. प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन

अध्याय-समीक्षा 

  • एक छोटा प्रकाश स्रोत किसी अपारदर्शी वस्तु की तीक्ष्ण छाया बनाता है, प्रकाश के एक सरलरेखीय पथ की ओर इंगित करता है, जिसे प्रायः प्रकाश किरण कहते हैं।
  • प्रकाश का मार्ग सदा सीधा एवं सरल होता है |
  • प्रकाश सभी वस्तुओं को दृश्यमान बनाता है |
  • कोई वस्तु उस पर पड़ने वाले प्रकाश को परावर्तित करती है। यह परावर्तित प्रकाश जब हमारी आँखों द्वारा ग्रहण किया जाता है, तो हमें वस्तुओं को देखने योग्य बनाता है।
  • किसी पारदर्शी माध्यम से हम आर-पार देख सकते हैं, क्योंकि प्रकाश इससे पार (transmitted) हो जाता है |
  • प्रकाश से सम्बद्ध अनके सामान्य तथा अदभुत परिघटनाएं हैं जसै – दर्पणों द्वारा प्रतिबिंब का बनना, तारों का टिमटिमाना, इन्द्रधनुष के सुन्दर रंग, किसी माध्यम द्वारा प्रकाश का मोड़ना आदि।
  • यदि प्रकाश के पथ में रखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत छोटी हो तो प्रकाश सरल रेखा में चलने की बजाय इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृत्ति दर्शाता है – इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तनकहते हैं।
  • प्रकाश का आधुनिक क्वांटम सिद्धांत, जिसमें प्रकाश को न तो ‘तरंग’ माना गया न ही ‘कण’। इस नए सिद्धांत ने प्रकाश के कण संबंधी गुणों तथा तरंग प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित किया।
  • जब प्रकाश की किरण किसी परावर्तक पृष्ठ से टकराता है तो यह टकराकर पुन: उसी माध्यम में मुड जाता है जिस माध्यम से यह चलकर आता है | इसे ही प्रकाश का परावर्तन कहते हैं |
  • परावर्तन का नियम –
    1. आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है,
    2. आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण, सभी एक ही तल में होते हैं |
  • परावर्तन के ये नियम गोलीय पृष्ठों सहित सभी प्रकार के परावर्तक पृष्ठों के लिए लागू होते हैं।
  • समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब का गुण :
    1. समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब सदैव आभासी तथा सीधा होता है।
    2. प्रतिबिंब का साइज बिंब (वस्तु) के साइज़ के बराबर होता है।
    3. प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है, जितनी दूरी पर दर्पण के सामने बिंब है।
    4. इसके अतिरिक्त प्रतिबिंब पार्श्व परिवर्तित होता है।
  • प्रकाश की किरण : जब प्रकाश अपने प्रकाश के स्रोत से गमन करता है तो यह सीधी एवं एक सरल रेखा होता है | प्रकाश के स्रोत से चलने वाले इस रेखा को प्रकाश की किरण कहते है |
  • छाया: जब प्रकाश किसी अपारदर्शी वस्तु से होकर गुजरता है तो यह प्रकाश की किरण को परावर्तित कर देता है जिससे उस अपारदर्शी वस्तु की छाया बनती है |
  • दर्पण : यह एक चमकीला और अधिक पॉलिश किया हुआ परावर्तक पृष्ठ होता है जो अपने सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाता है |
  • गोलीय दर्पण (Spherical mirror) : इसका परावर्तक पृष्ठ वक्र (मुड़ा हुआ) होता है | गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर या बाहर की ओर वक्रित हो सकता है |
  • ऐसे दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है, गोलीय दर्पण कहलाता है |
  • अवतल दर्पण (Concave mirror) : इसका परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर धसा हुआ (वक्रित)  होता है |
  • उत्तल दर्पण (convex mirror) :इसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की तरफ उभरा हुआ (वक्रित) होता है |
  • ध्रुव (Pole): गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को दर्पण का ध्रुव कहते है | इसे P से इंगित किया जाता है |
  • वक्रता केंद्र (Center of Curvature): गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है | इस गोले का केंद्र को गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहते है | इसे अंग्रेजी के बड़े अक्षर C से इंगित किया जाता है |
  • वक्रता त्रिज्या (The radius of Curvature): गोलीय दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र के बीच की दुरी को वक्रता त्रिज्या कहते है |
  • मुख्य अक्ष (Principal axis): गोलीय दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र से होकर गुजरने वाली एक सीधी रेखा को दर्पण का मुख्य अक्ष कहते है |
  • मुख्य फोकस (Principal Focus): दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र के बीच एक अन्य बिंदु F होता है जिसे मुख्य फोकस कहते है | मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें परावर्तन के बाद अवतल दर्पण में इसी मुख्य फोकस पर प्रतिच्छेद करती है तथा उत्तल दर्पण में प्रतिच्छेद करती प्रतीत होती है |
  • फोकस दुरी (Focal Length): दर्पण के ध्रुव एवं मुख्य फोकस के बीच की दुरी को फोकस दुरी कहते है, इसे अंग्रेजी के छोटे अक्षर () से इंगित किया जाता है | यह दुरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है |
  • द्वारक (Aperatute): गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अधिकांशत: गोलीय ही होता है | इस पृष्ठ की एक वृत्ताकार सीमा रेखा होती है | गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की इस सीमा रेखा का व्यास, दर्पण का द्वारक कहलाता है |
  • उत्तल दर्पणों का उपयोग सामान्यतः वाहनों के पश्च.दृश्य (wing) दर्पणों के रूप में किया जाता है।
  • दर्पण सूत्र :प्रतिबिंब की दुरी (v) का व्युत्क्रम और बिंब की दुरी (u) का व्युत्क्रम का योग फोकस दुरी (f) के व्युत्क्रम के बराबर होता है |
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    किसी बिंब का प्रतिबिंब कितना गुना बड़ा है या छोटा है यही प्रतिबिंब का आवर्धन कहलाता है |
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  • आवर्धन के लिए बिंब की ऊँचाई धनात्मक ली जाती है, क्योंकि बिंब हमेशा मुख्य अक्ष के ऊपर और सीधा रखा जाता है |
  • आभासी तथा सीधा प्रतिबिंब के लिए प्रतिबिंब की ऊँचाई (h’) धनात्मक (+) ली जाती है और वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब के लिए बिंब कि ऊँचाई (h’) ऋणात्मक (-) ली जाती है |
  • प्रकाश का अपवर्तन : जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो यह अपने मार्ग से विचलीत हो जाती हैं। प्रकाश के किरण को अपने मार्ग से विचलीत हो जाना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता हैं ।प्रकाश का अपवर्तन सिर्फ पारदर्शी पदार्थों से ही होता है | जैसे शीशा, वायु, जल आदि |
  • जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या  (sine) तथा  अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात एक नियतांक होता हैं । इस नियम को स्नेल का अपवर्तन नियम भी कहते  हैं |
  • जब प्रकाश की किरण एक माध्यम (विरल) से दूसरे माध्यम (सघन) मे जाती हैं तो यह अभिलंब की ओर मुड जाती हैं । जब यही प्रकाश की किरण सघन से विरल की ओर जाती हैं तो अभिलंब से दूर भागती हैं।
  • जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या  (sine) तथा  अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात एक नियतांक (स्थिरांक) होता हैं । इसी स्थिरांक के मान को पहले माध्यम के सापेक्ष दुसरे माध्यम का अपवर्तनांक (refractive index) कहते हैं |
  • दो पृष्ठों से घिरा हुआ कोई पारदर्शी माध्यम जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय है, लेंसकहलाता है |
  • वह लेंस जिसके दोनों बाहरी गोलीय पृष्ठों का उभार बाहर की ओर हो उसे उत्तल लेंस कहते हैं | इस लेंस को अभिसारी लेंस भी कहते हैं क्योंकि यह अपने से गुजरने वाले प्रकाश किरणों को अभिसरित कर देता है |
  • वह लेंस जिसके दोनों बाहरी गोलीय पृष्ठ अंदर की ओर वक्रित हो उसे अवतल लेंस कहते हैं | इस लेंस को अपसारी लेंस भी कहते हैं क्योंकि यह अपने से गुजरने वाले प्रकाश किरणों को अपसरित कर देता है |
  • लेंस की क्षमता : किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण और अपसरण करने की मात्रा (degree) को लेंस की क्षमता कहते हैं | यह उस लेंस के फोकस दुरी के व्युत्क्रम के बराबर होता है | इसे P द्वारा व्यक्त किया जाता है और इसका S.I मात्रक डाइऑप्टर (D) होता है |

पाठगत-प्रश्न:

पेज – 185

प्रश्न 1. अवतल दर्पण के मुख्य फोकस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें परावर्तन के बाद दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र के बीच एक बिंदु F पर प्रतिच्छेद करती है | इसी बिंदु को अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहते है |

प्रश्न 2. एक गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या 20 cm है। इसकी फोकस दूरी क्या होगी?
उत्तर:
वक्रता त्रिज्या = 20 cm
फोकस दुरी = वक्रता त्रिज्या/2
= 20/2
= 10 cm
अत: दिए गए गोलीय दर्पण का फोकस दुरी 10 cm है |

प्रश्न 3. उस दर्पण का नाम बताइए जो बिंब का सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बना सके।
उत्तर:
अवतल दर्पण, जब अवतल दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच बिंब को रखते है तो यह सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बनाता है |

प्रश्न 4. हम वाहनों में उत्तल दर्पण को पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में वरीयता क्यों देते हैं?
उत्तर:
उत्तल दर्पणों को इसलिए भी प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ये सदैव सीधा प्रतिबिंब बनाते हैं यद्यपि वह छोटा होता है। इनका दृष्टि.क्षेत्र भी बहुत अधिक है क्योंकि ये बाहर की ओर वक्रित होते हैं। अतः समतल दर्पण की तुलना में उत्तल दर्पण ड्राइवर को अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में समर्थ बनाते हैं।

पेज – 188

प्रश्न 1. उस उत्तल दर्पण की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए जिसकी वक्रता-त्रिज्या 32 cm है।
उत्तर:
उत्तल दर्पण में,
वक्रता त्रिज्या R = 32 cm
वक्रता त्रिज्या = 2 × फोकस दुरी
फोकस दुरी = वक्रता त्रिज्या/2
= 32/2
= 16 cm
अत: उस उत्तल दर्पण की फोकस दुरी = 16 cm है |

प्रश्न 2. कोई अवतल दर्पण आपने सामने 10 cm दूरी पर रखे किसी बिंब का तीन गुणा आवर्धित (बड़ा) वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। प्रतिबिंब दर्पण से कितनी दूरी पर है।
उत्तर:
अवतल दर्पण में,
बिंब की दुरी (u) = – 10 cm
आवर्धन (m) = – 3 [चूँकि प्रतिबिंब वास्तविक है ]
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पेज – 194

प्रश्न 1. वायु में गमन करती प्रकाश की एक किरण जल में तिरछी प्रवेश करती है। क्या प्रकाश किरण अभिलंब की ओर झुकेगी अथवा अभिलंब से दूर हटेगी ? बताइए क्यों?
उत्तर:
प्रकाश किरण अभिलंब की ओर झुकेगी, क्योंकि प्रकाश की किरण वायु जो कि एक विरल माध्यम है से जल जो वायु की तुलना में एक सघन माध्यम है में प्रवेश करता है तो ऐसी स्थिति में प्रकाश अभिलम्ब की ओर झुकेगी |

प्रश्न 2. प्रकाश वायु से 1.50 अपवर्तनांक की काँच की प्लेट में प्रवेश करता है। काँच में प्रकाश की चाल कितनी है? निर्वात में प्रकाश की चाल 3 × 108 m/s है।
उत्तर:
काँच की प्लेट की अपवर्तनांक (n21) = 1.50
माध्यम1 में प्रकाश की चाल (V1) = 3 × 108 m/s
माध्यम2 में प्रकाश की चाल (V2) = ?
माध्यम1 के सापेक्ष माध्यम2 का
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काँच में प्रकाश की चाल = 2 × 108 m/s

प्रश्न 3. सारणी 10.3 से अधिकतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम को ज्ञात कीजिए। न्यूनतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम को भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:

  • अधिकतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम हीरा है जिसका अपवर्तनांक 2.42 है |
  • न्यूनतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम वायु है जिसका अपवर्तनांक 1.0003 है |

प्रश्न 4. आपको किरोसिन, तारपीन का तेल तथा जल दिए गए हैं। इनमें से किसमें प्रकाश सबसे अधिक तीव्र गति से चलता है? सारणी 10.3 में दिए गए आँकड़ों का उपयोग कीजिए।
उत्तर:
सारणी 10.3 से
किरोसिन का अपवर्तनांक = 1.44
तारपीन का अपवर्तनांक = 1.47
जल का अपवर्तनांक = 1.33
इसमें जल में प्रकाश की चाल सबसे अधिक है और तारपीन के तेल में प्रकाश की चाल सबसे कम है क्योंकि जिसका अपवर्तनांक जितना अधिक होगा उस माध्यम में प्रकाश की चाल उतनी ही कम होगी और जिस माध्यम का अपवर्तनांक जितना कम होगा उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही अधिक होगी |

प्रश्न 5. हीरे का अपवर्तनांक 2.42 है। इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हीरे का अपवर्तनांक 2.42 है। इस कथन का अभिप्राय यह है कि हीरा का प्रकाशिक घनत्व अधिक है जिससे यह एक कठोर पदार्थ है इसमें प्रकाश की चाल सबसे कम है |

पेज – 203

प्रश्न 1. किसी लेंस की 1 डाइऑप्टर क्षमता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
यदि किसी लेंस की फोकस दुरी 1 मीटर है तो इसे लेंस की 1 डाइऑप्टर क्षमता कहते है |

प्रश्न 2. कोई उत्तल लेंस किसी सुई का वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिंब उस लेंस से 50 cm दूर बनाता है। यह सुई, उत्तल लेंस के सामने कहाँ रखी है, यदि इसका प्रतिबिंब उसी साइज का बन रहा है जिस साइज का बिंब है। लेंस की क्षमता भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
उत्तल लेंस में –
प्रतिबिंब वास्तविक एवं उल्टा है |
अत: प्रतिबिम्ब की दुरी (v) = 50 cm
बिंब की ऊंचाई (h) = प्रतिबिंब की ऊंचाई (h’)
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प्रश्न 3. 2 m फोकस दूरी वाले किसी अवतल लेंस की क्षमता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
अवतल लेंस की फोकस दुरी = – 2 m
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अभ्यास

प्रश्न 1. निम्न में से कौन-सा पदार्थ लेंस बनाने के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता?
(a) जल
(b) काँच
(c) प्लास्टिक
(d) मिट्टी
उत्तर:
(d) मिटटी

प्रश्न 2. किसी बिंब का अवतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब आभासी, सीधा तथा बिंब से बड़ा पाया गया। वस्तु की स्थिति कहाँ होनी चाहिए?
(a) मुख्य फोकस तथा वक्रता केंद्र’ के बीच
(b) वक्रता केंद्र पर
(c) वक्रता केंद्र से परे
(d) दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच
उत्तर:
(a) मुख्य फोकस तथा वक्रता केंद्र’ के बीच

प्रश्न 3. किसी बिंब का वास्तविक तथा समान साइज का प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए बिंब को उत्तल लेंस के सामने कहाँ रखें?
(a) लेंस के मुख्य फोकस पर
(b) फोकस दूरी की दोगुनी दूरी पर
(c) अनंत पर
(d) लेंस के प्रकाशिक केंद्र तथा मुख्य फोकस के बीच
उत्तर:
(b) फोकस दूरी की दोगुनी दूरी पर

प्रश्न 4. किसी गोलीय दर्पण तथा किसी पतले गोलीय लेंस दोनों की फोकस दूरियाँ -15 cm हैं। दर्पण तथा लेंस संभवतः हैं-
(a) दोनों अवतल
(b) दोनों उत्तल
(c) दर्पण अवतल तथा लेंस उत्तल
(d) दर्पण उत्तल तथा लेंस अवतल
उत्तर:
(a) दोनों अवतल

प्रश्न 5. किसी दर्पण से आप चाहे कितनी ही दूरी पर खड़े हों, आपका प्रतिबिंब सदैव सीधा प्रतीत होता है। संभवतः दर्पण है-
(a) केवल समतल
(b) केवल अवतल
(c) केवल उत्तल
(d) या तो समतल अथवा उत्तल
उत्तर:
(d) या तो समतल अथवा उत्तल

प्रश्न 6. किसी शब्दकोष (dictionary) में पाए गए छोटे अक्षरों को पढ़ते समय आप निम्न में से कौन-सा लेंस पसंद करेंगे?
(a) 50 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस
(b) 50 cm फोकस दूरी का एक अवतल लेंस
(c) 5 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस
(d) 5 cm फोकस दूरी का एक अवतल लेंस
उत्तर :
(c) 5 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस

प्रश्न 7. 15 cm फोकस दूरी के एक अवतल दर्पण का उपयोग करके हम किसी बिंब का सीधा प्रतिबिंब बनाना चाहते हैं। बिंब का दर्पण से दूरी का परिसर (range) क्या होना चाहिए? प्रतिबिंब की प्रकृति कैसी है? प्रतिबिंब बिंब से बड़ा है अथवा छोटा? इस स्थिति में प्रतिबिंब बनने का एक किरण आरेख बनाइए।
उत्तर:
अवतल दर्पण में आभासी एवं सीधा प्रतिबिंब तभी बनता है जब बिंब मुख्य फोकस और ध्रुव के बीच हो | चूँकि अवतल दर्पण का फोकस दुरी 15 cm है, अर्थात ध्रुव और फोकस की बीच की दुरी 15 cm है | इसलिए बिंब को 0cm से 15cm के बीच दर्पण के सामने रखना चाहिए, तभी सीधा प्रतिबिंब बनता है |
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प्रतिबिंब की प्रकृति : आभासी एवं सीधा
प्रतिबिंब का आकार : वस्तु से बड़ा

प्रश्न 8. निम्न स्थितियों में प्रयुक्त दर्पण का प्रकार बताइए-
(a) किसी कार का अग्र-दीप (हैड-लाइट)
(b) किसी वाहन का पार्श्व/पश्च-दृश्य दर्पण
(c) सौर भट्टी
अपने उत्तर की कारण सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
(a) किसी कार का अग्र-दीप (हैड-लाइट) अवतल दर्पण का बनाया जाता है, क्योंकि यदि बल्ब को दर्पण के मुख्य फोकस पर रख दिया जाए तो यह दर्पण से परावर्तित होकर एक समांतर किरण पुंज बनाता है |
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(b) किसी वाहन का पार्श्व/पश्च-दृश्य दर्पण के लिए उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये सदैव छोटा परन्तु सीधा प्रतिबिंब बनाता है | चूँकि उत्तल दर्पण बाहर की ओर वक्रित होता है इसलिए इसका दृष्टि-क्षेत्र काफी बढ़ जाता है जीससे ड्राईवर गाड़ी के पीछे के बहुत बड़े हिस्से को देख पाता है |
(c) सौर भट्टी में सूर्य के प्रकाश केन्द्रित करना पड़ता है जिसके लिए अवतल दर्पण उपयुक्त है | यह दर्पण अनंत से होकर आने वाला मुख्य अक्ष के समान्तर प्रकाश किरणों को फोकस से होकर गुजारता है जिससे फोकस के आस-पास का तापमान 180C से 200C तक बढ़ जाता है |

प्रश्न 9. किसी उत्तल लेंस का आधा भाग काले कागज से ढक दिया गया है। क्या यह लेंस किसी बिंब का पूरा प्रतिबिंब बना पाएगा? अपने उत्तर की प्रयोग द्वारा जाँच कीजिए। अपने प्रेक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हाँ, किसी उत्तल लेंस को यदि आधा भाग काले कागज से ढक भी दिया जाए तब भी यह लेंस किसी दिए गए बिंब का पूरा एवं स्पष्ट प्रतिबिंब बनाता है |
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जाँच – अब एक काले कागज से आधा भाग ढका हुआ उत्तल लेंस को किसी स्टैंड के सहारे रखते हैं और लेंस के एक तरफ जलती हुई मोमबती तथा दूसरी तरफ एक सफ़ेद पर्दा रखिये | अवलोकन में हम पाते हैं कि पर्दे पर मोमबती का पूरा प्रतिबिंब बना हुआ है जो वास्तविक एवं उल्टा है |

प्रश्न 10. 5 cm लंबा कोई बिंब 10 cm फोकस दूरी के किसी अभिसारी लेंस से 25 cm दूरी पर रखा जाता है। प्रकाश किरण-आरेख खींचकर बनने वाले प्रतिबिंब की स्थिति, साइज तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
किरण आरेख –
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बिंब की ऊंचाई (h) = + 5 cm
अभिसारी अर्थात उत्तल लेंस में
फोकस दुरी (f) = + 10 cm [लेंस अभिसारी है]
बिंब की दुरी (u) = – 25 cm
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प्रतिबिंब की स्थिति : प्रतिबिंब लेंस के दूसरी ओर 16.67 cm की दुरी पर बनेगा |
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प्रतिबिंब का साइज़ : प्रतिबिंब बिंब से छोटा है | तथा ऋणात्मक चिन्ह बताता है कि प्रतिबिंब वास्तविक और उल्टा है |
प्रतिबिंब की प्रकृति : वास्तविक और उल्टा |

प्रश्न 11. 15 cm फोकस दूरी का कोई अवतल लेंस किसी बिंब का प्रतिबिंब लेंस से 10 cm दूरी पर बनाता है। बिंब लेंस से कितनी दूरी पर स्थित है? किरण आरेख खींचिए।
उत्तर :
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अवतल लेंस की फोकस दुरी (f) = – 15 cm
बिंब की दुरी (u) = ?
प्रतिबिंब की दुरी (v) = – 10 cm
लेन्स सूत्र से,
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अत: बिंब को लेंस से 30 cm दूर रखेंगे |

प्रश्न 12. 15 cm फोकस दूरी के किसी उत्तल दर्पण से कोई बिंब 10 cm दूरी पर रखा है। प्रतिबिंब की स्थिति तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
उत्तल दर्पण की फोकस दुरी = 15 cm
बिंब की दुरी = -10 cm
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प्रतिबिंब की स्थिति : प्रतिबिंब दर्पण के पीछे 6 cm दुरी पर बनेगा |
प्रतिबिंब की प्रकृति : आभासी और सीधा होगा |

प्रश्न 13. एक समतल दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन 1 है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर :
समतल दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन 1 है इसका अर्थ यह है कि बिंब का आकार प्रतिबिंब के आकार के बराबर है और बिंब से समान दुरी पर प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बना है | इसका धनात्मक चिन्ह यह बताता है कि प्रतिबिंब आभासी और सीधा है |

प्रश्न 14. 5.0 cm लंबाई का कोई बिंब 30 cm वक्रता त्रिज्या के किसी उत्तल दर्पण के सामने 20 cm दूरी पर रखा गया है। प्रतिबिंब की स्थिति, प्रकृति तथा साइज ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
उत्तल दर्पण का वक्रता त्रिज्या (R) = 30 cm
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प्रतिबिंब की स्थिति : प्रतिबिंब दर्पण के पीछे 8.6 cm दुरी पर बनेगा |
प्रतिबिंब की प्रकृति : आभासी और सीधा होगा |
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प्रश्न 15. 7.0 cm साइज का कोई बिंब 18 cm फोकस दूरी के किसी अवतल दर्पण के सामने 27 cm दूरी पर रखा गया है। दर्पण से कितनी दूरी पर किसी परदे को रखें कि उस पर वस्तु का स्पष्ट फोकसित प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सके। प्रतिबिंब का साइज तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
अवतल दर्पण की फोकस दुरी (f) = -18 cm
बिंब की दुरी (u) = -27 cm
बिंब की ऊंचाई (h) = 7 cm
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प्रतिबिंब की स्थिति : प्रतिबिंब दर्पण के सामने 54 cm दुरी पर बनेगा |
प्रकृति : वास्तविक और उल्टा होगा |
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अत: प्रतिबिंब आवर्धित ​बिंब से बडा बनेगा |

प्रश्न 16. उस लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए जिसकी क्षमता – 2.0 D है। यह किस प्रकार का लेंस है?
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अत: फोकस दुरी 50 cm ता 0.5 m है |
ऋणात्मक मान यह बताता है कि लेंस अपसारी लेंस अथवा अवतल लेंस है |

प्रश्न 17. कोई डॉक्टर +1.5 D क्षमता का संशोधक लेंस निर्धारित करता है। लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। क्या निर्धरित लेंस अभिसारी है अथवा अपसारी?
उत्तर : P = + 1.5 D
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धनात्मक मान यह बताता है कि लेंस अभिसारी है |

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1 : आपतित किरण किसे कहते है ?
उत्तर :
प्रकाश स्रोत से किसी दि गई सतह पर पडने वाली प्रकाश किरण को आपतित किरण कहते है।

प्रश्न 2 : परावर्तित किरण किसे कहते हैं?
उत्तर :
आपतन बिन्दु पर आपतित किरण जब परावर्तित होकर उसी माध्यम में मुड जाती है तो उस किरण को परावर्तित किरण कहते है।

प्रश्न 3 : उस दर्पण का नाम बताइए जो बिम्ब  सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिम्ब बना सके ।
उत्तर :
अवतल दर्पण ।

प्रश्न 4 : वाहनों में उतल दर्पण ही क्यों लगाया जाता हैं ?
उत्तर :
क्योकि उतल दर्पण सदैव सीधा प्रतिबिम्ब बनाते हैें। इनका दृष्टि क्षेत्र बहुत अधिक अर्थात लंबी दूरी के भी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाते हैं । क्योकि ये बाहर की ओर वक्रित होते हैं ।

प्रश्न 5: प्रकाश के अपवर्तन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती  हैं तो यह अपने मार्ग से विचलीत हो जाती हैं। प्रकाश के किरण को अपने मार्ग से विचलीत हो जाना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता हैं ।

प्रश्न 6 : अपवर्तनांक किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती  हैं तो यह अपने मार्ग से विचलीत हो जाती हैं। ये विचलन  माध्यम और उस माध्यम में प्रकाश की चाल पर निर्भर करता  हैं । अतः अपवर्तनांक माध्यमों में प्रकाश की चालों का अनुपात होता है।

प्रश्न 7: जब प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हैं तो किस प्रकार मुडती है ?
उत्तर :
जब प्रकाश की किरण एक माध्यम (विरल) से दूसरे माध्यम (सघन) मे जाती हैं तो यह अभिलंब की ओर मुड जाती हैं । जब यही प्रकाश की किरण सघन से विरल की ओर जाती हैं तो अभिलंब से दूर भागती हैं।

प्रश्न 8 : प्रकाश के परावर्तन के नियम लिखिए |
उत्तर :
प्रकाश परावर्तन के दो नियम है-

  1. परावर्तन कोण सदैव आपतन कोण के बराबर हाता है।
  2. आपतित किरण दर्पण के आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण एक ही तल में होते है।

प्रश्न 9: स्नैल का नियम लिखिए |
उत्तर:
जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या  (sin) अपवर्तन कोण की ज्या (sin) का अनुपात एक नियतांक होता हैं । इस नियतांक को दूसरे माध्यम का पहले माध्यम के सापेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं । इस नियम को स्नैल का नियम भी कहते है।

प्रश्न 10: प्रकाश के अपवर्तन के नियम लिखिए।
उत्तर :
प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम हैं ।

  1. आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा आपतन बिन्दु पर अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं ।
  2. जब प्रकाश की किरण किन्हीं दो माध्यमों के सीमा तल पर तिरछी आपतित होती हैं तो आपतन कोण (i) की ज्या  (sin) तथा  अपवर्तन कोण (r) की ज्या (sin) का अनुपात एक नियतांक होता हैं ।

प्रश्न 11: निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए |
1. किस दर्पण में वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है ?
2. किस दर्पण की फोकस दूरी सदैव धनात्मक होती हैं ।
3. दर्पण का बिम्ब को ऋणात्मक मान क्यों रखते हैं ?
4. उस दर्पण का नाम बताइए जिसकी फोकस दूरी ऋणात्मक होती हैं ?
उत्तर:
1.  अवतल दर्पण ।
2.  उतल दर्पण ।
3.  क्योकि बिम्ब सदैव दर्पण के सामने (बाई ओर ) ही रखते हैं ।
4.  अवतल दर्पण ।

प्रश्न 12: लेंस की क्षमता क्या हैं ? इसका SI मात्रक क्या है ?
उत्तर :
किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण या अपसरण करने की मात्रा (डिग्री) को उसकी क्षमता कहते है। यह उस लेंस के फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होता हैं। इसका SI मात्रक डाइऑप्टर (D) होता हैं।
लेंस की क्षमता को  P द्वारा व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 13: किस लेंस की क्षमता धनात्मक होती है ?
उत्तर :
उतल लेंस ।

प्रश्न 14 : किस लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है ?
उत्तर :
अवतल लेंस ।

प्रश्न 15 : एक लेंस की क्षमता +2.0 D है। वह कौन सा लेंस हैं। उस लेंस की फोकस दूरी कितनी है ?
उत्तर :
वह लेंस उतल हैं क्योंकि उतल लेंस की क्षमता धनात्मक होता हैं। उसकी फोकस दूरी + 0.50 m है।

प्रश्न 16 : चश्मा बनाने वाले विभिन्न क्षमता के लेंसों का उपयोग किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर :
चश्मा बनाने वाले विभिन्न क्षमता के लेंसों का उपयोग बीजगणितिय योग के रूप मे करते है। जैसे –
P = P1 + P2+ ……

प्रश्न 17 : प्रकाश का मार्ग किस प्रकार होता है।
उत्तर :
प्रकाश का मार्ग एक सीधी सरल रेखा होती हैं।

प्रश्न 18 : किसी गोलिय दर्पण के फोकस दूरी क्या होती है ?
उत्तर :
किसी गोलिय दर्पण के फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।

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NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 9 Heredity and Evolution (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 9 Heredity and Evolution (Hindi Medium)

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Chapter 9. अनुवांशिकता एवं जैव विकास

अध्याय-समीक्षा

  • स्पीशीज में विभिन्नताएँ उसे उत्तरजीविता के योग्य बना सकती हैं अथवा केवल आनुवंशिक विचलन में योगदान देती हैं।
  • कायिक ऊतकों में पर्यावरणीय कारकों द्वारा उत्पन्न परिवर्तन वंशानुगत नहीं होते।
  • विभिन्नताओं के भौगोलिक पार्थक्य के कारण स्पीशीकरण हो सकता है।
  • विकासीय संबंधों को जीवों के वर्गीकरण में ढूँढ़ा जा सकता है।
  • काल में पीछे जाकर समान पूर्वजों की खोज से हमें अंदाजा होता है कि समय के किसी बिंदु पर अजैव पदार्थों ने जीवन की उत्पत्ति की।
  • जैव-विकास को समझने के लिए केवल वर्तमान स्पीशीश का अध्ययन पर्याप्त नहीं है, वरन् जीवाश्म अध्ययन भी आवश्यक है।
  • अस्तित्व लाभ हेतु मध्यवर्ती चरणों द्वारा जटिल अंगों का विकास हुआ।
  • जैव-विकास के समय अंग अथवा आकृति नए प्रकार्यों के लिए अनुकूलित होते हैं। उदाहरण के लिए, पर जो प्रारंभ में ऊष्णता प्रदान करने के लिए विकसित हुए थे, कालांतर में उड़ने के लिए अनुकूलित हो गए।
  • विकास को ‘निम्न’ अभिरूप से ‘उच्चतर’ अभिरूप की ‘प्रगति’ नहीं कहा जा सकता। वरन् यह प्रतीत होता है कि विकास ने अधिक जटिल शारीरिक अभिकल्प उत्पन्न किए हैं जबकि सरलतम शारीरिक अभिकल्प भलीभाँति अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।
  • मानव के विकास के अध्ययन से हमें पता चलता है कि हम सभी एक ही स्पीशीश के सदस्य हैं जिसका उदय अफ्रीका में हुआ और चरणों में विश्व के विभिन्न भागों में फैला |

पाठगत-प्रश्न:

पेज – 157 

प्रश्न 1. यदि एक ‘ लक्षण – A ’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘ लक्षण – B ’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर :
लक्षण – ‘ B ’ पहले उत्पन्न हुआ होगा क्योंकि इसका प्रतिशत ज्यादा हैं | लक्षण ‘ A ‘ केवल 10 प्रतिशत जीवों में है | अलैंगिक प्रजनन में DNA  प्रतिकृति के समय कम विभिन्नताएँ होती है |

प्रश्न 2. विभिन्नताओं उत्पन्न होने से  किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार  बढ जाता है ?
उत्तर :
पीढ़ी दर पीढ़ी जीवों के अनुसार स्वयं को बदलना पड़ता है | वह वातावरण के अनुसार अनुकूलित होने पर ही जीवित रह सकते है | अतः विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व बदल जाता है | तथा यह लैंगिक जनन में उत्पन्न होती है |

पेज – 161

प्रश्न 1. मेंडल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर : 
मेंडल ने बौने व लंबे मटर के पौधों का संकरण किया F1 ( प्रथम पीढ़ी ) में नंही पौधों लंबे आकार के थे | इस प्रकार बौनापन Fपीढ़ी में नंही दिखा | इसके पश्चात् उसने दोनों तरह के पैतृक पौधों तथा  F1 पीढ़ी का स्वपरागण कराया | अब उत्पन्न F2 के सभी पौधे लंडे नहीं थे | इसका निष्कर्ष निकला कि लंबे होने का लक्षण प्रभावी व बौनेपन का लक्षण अप्रभावी हैं

प्रश्न 2. मेंडल के  प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं?
उत्तर :
मेंडल ने गोल बीज वाले लंबे पौधों का झुर्रीदार बीजों वाले बिने पौधों से संकरण कराया तो   संतति में सभी पौधे प्र्ब्नावी लक्षणों के थे | परन्तु   संतति में कुछ पौधे गोल बीज वाले , कुछ झुर्रीदार बीज वाले बौने पौधे थे | अतः ये लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं |

प्रश्न 3. एक A ।.रुध्रि वर्ग’ वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुध्रि वर्ग ‘O’ है, से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग – ‘O’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है यदि आपसे कहा जाए कि कौन सा विकल्प लक्षण – रुध्रि वर्ग- ‘A’ अथवा ‘O’ प्रभावी लक्षण हैं? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर :
यह सुचना पर्याप्त नहीं हैं | कुछ लक्षण जीनोम में निहित होते हैं | परन्तु जानकारी के अनुसार हम कह सकते हैं | कि रूधिर वर्ग (O) प्रभावी हैं | कुछ लक्षण जीन में छुपे होते है केवल प्रभावी लक्षण दिखाई देते हैं |

प्रश्न 4. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर :
बच्चे में लिंग को लिंग गुणसूत्र निर्धारित करता हैं | मानव में गुणसूत्र निर्धारित करता हैं | मानव में गुणसूत्र के 23 जोंडे होते हैं | जिसमें से 1 जोड़ा लिंग गुणसूत्र का होता हैं सित्रयों में लिंग गुणसूत्र (xx) होते हैं | लेकिन पुरूषों में लिंग गुणसूत्र (xy) होते हैं सभी बच्चे माँ से “x” गुणसूत्र पाए जाते है| परन्तु पिता से “X” या “Y” कोई भी |इस प्रकार पिता का गुणसूत्र निर्णय लेता है कि बच्चा बेटा है या बेटी |

पेज – 165 

प्रश्न 1. वे कौन से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है।
उत्तर : 
विशिष्ट लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या निम्न तरीकों से समष्टि में बढ़ सकती है

  1. समष्टि की वृद्धि लौंगिक प्रजनन पर आधारित है | विभिन्नताएँ ही स्पीशीज को सुरक्षित रखती है | छोटे जीव बड़े जीवों से सुरक्षित रखने के लिए रंग विभेद कर सकता है |
  2. छोटी समष्टि अधिक शिकार बनती है अत: आकार परिवर्तन के कारण भी एक व्यष्टि बच सकती है |

प्रश्न 2. एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतः अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते। क्यों?
उत्तर :
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रभावी लक्षण डी.एन.ए द्र्वारा स्थानांतरित होते है उपार्जित लक्षण डी.एन .ए में नहीं आते अत: ये अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते |

प्रश्न 3. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता के दृष्टिकोण से चिंता का विषय क्यों है। 
उत्तर :
पर्यावरण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने अन्दर बदलाव उत्पन्न करता है तभी वह जीवित रह पता हैं | बाघ पर्यावरण के अनुकूल परिवर्तन नहीं कर रहे | पर्यावरण में मनुष्य के द्र्वारा आए दिन परिवर्तन हो रहे है | बाघों की संख्या दिन -प्रतिदिन घटती जा रही है जो चिंता का विषय है |

पेज – 166 

प्रश्न 1. वे कौन से कारक हैं जो नयी स्पीशीश के उद्भव में सहायक हैं?   
उत्तर :
कारक जो नवीन स्पीशीज के जन्म में सहायक है |

  1. शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन |
  2. गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन |
  3. विभिन्नताएँ जिसमें जनन की क्षमता न हो |
  4. आनुवंशिक विचलन वा प्राक्रतिक वरण |

प्रश्न 2. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीश के  पौधें के जाति – वद्र्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर :
भौतिक लक्षण भौगोलिक पृथक्करण द्वारा प्रभावित होते है | और इनमें विभिन्नता जाति उद्र्भव का एक अन्य कारण हो सकता है परन्तु मुख्य कारण डी.एन .ए  प्रतिकृति के दौरान उनमें परिवर्तन आना होता है | स्वपरागित स्पीशीज में नई पीढियों में नए बदलाव या विभिन्नताएँ उत्पन्न होने की उम्मीद बहुत कम होती है |

प्रश्न 3. क्या भौगोलिक पृथक्करण अलैंगिक जनन वाले जीवों के जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर :
अलैंगिक जनन में उत्पन्न जिव लगभग एक दुसरे के सामान होते है तथा उनमें बहुत थोड़ा अन्तर होता है | इस क्रिया में विभिन्नताएँ DNA प्रतिकृति के दौरान  ही होती है तथा ये विभिन्नताएँ बहुत कम होती है |  भौगोलिक पृथक्करण इनमें जाति उद्र्भव का प्रमुख कारक हो सकता है क्योंकि इसके कारण ही नए वातावरण में जीवित रहने वी जीव अपने अन्दर नए उत्पन्न करते है |

पेज – 171   

प्रश्न 1. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज़ के  विकासीय संबंध निर्धारण के  लिए करते हैं?
उत्तर :
दो स्पीशीज़ के  विकासीय संबंध निर्धारण के उदाहरण:- पक्षियों , सरीसृप व जल – स्थलचर की तरह ही स्तनधारियों के भी चार पैर होते है | चाहे इनकी आधारभूत संरचना एक पर भिन्न कार्य सम्पन्न करने के लिए इनमें रूपांतरण हुआ है | इस प्रकार समजात लक्षणों से ही हम इन संबंधो को समझ सकते है |

प्रश्न 2. क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर :
नहीं ,वे समाजात नहीं समरूप अंग कहलाते है | तितली और चमगादड़ के पंखों की संरचना अलग होती है | वे उत्पति मर भी एक समान नहीं है | तितली के पंख में हह्रिहयाँ नहीं होती जबकि चमगादड़ में होती है |

प्रश्न 3. जीवाश्म क्या हैं? वे जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर :
मृत जीवों के अवशेष ,चट्टानों पर के चिन्ह या उम्नके साँचे व शरीर की छाप जो हजारों साल पूर्व जीवित थे | इस तरह के सुरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते है | ये जीवाश्म हमें जैव – विकास प्रकम के बारे में कई बातें बताते है जैसे कौन से जीवाश्म नवीन है तथा कौन से पुराने , कौन सी स्पीशीज विलुप्त हो गई है | ये जीवाश्म विकास विभिन्न रूपों तथा वर्गों कभी वर्णन करते गुणों को भी ज्ञात कर सकते है |

पेज – 173  

प्रश्न 1. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई पड़ने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर : 

सभी मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य है | जैसे – उत्खनन , समय – निर्धारण व जीवाश्म अध्य्य के साथ डी.एन.ए. अन्रुक्रम के निर्धारण से मानव के विभिन्न चरणों का ज्ञान होता है | मानव पूर्वजों का उद्र्भव अफ्रीका से हुआ | अफ्रीका से पूर्वज विभिन्न क्षेत्रों में फ़ैल गए तथा कुछ वहीँ पर रह गए | अत: आभासी प्रजातियों का कोई जैविक आधार नहीं है |

प्रश्न 2. विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
मानव एवं  चिम्पैंजी दोनों के ही पूर्वज एक सामान थे | चिम्पैंजी मानव के ही सामान अपने क्रियाकलाप सम्पन्न कर सकता है | परन्तु अत्यधिक जटिलता के कारण विकास कि दृष्टि से शरीरिक अभिकल्प में त्रुटियाँ भी है पर फिर भी जीवाणु , मकड़ी व मछली से उत्तम है |

अभ्यास

प्रश्न 1. मेंडल के  एक प्रयोग में लंबे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधें जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधें में पुष्प बैंगनी रंग के  थे। परंतु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लंबे जनक पौधें की आनुवंशिक रचना निम्न थी |
(a) TTWW
(b) TTww
(c) TtWW
(d) TtWw
उत्तर :
(c) TtWW |

प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है | 
(a)  हमारा हाथ तथा कुत्ते  अग्रपाद |
(b)  हमारे दाँत तथा हाथी के  दाँत | 
(c)  आलू एवं घास के  उपरिभूस्तारी |
(d)  उपरोक्त सभी | 
उत्तर :
(d)  उपरोक्त सभी |

प्रश्न 3. विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किस से अध्कि समानता है ?
(a)  चीन के  विद्यार्थी

(b) चिम्पैंजी
(c)  मकड़ी
(d)  जीवाणु
उत्तर :
(a)  चीन के  विद्यार्थी |

प्रश्न 4 : एक अध्ययन से प्या चलन कि के रंग की आँखों वाले बच्चों के  जनक ( माता-पिता )  की आँखें भी हलके रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के  हलके रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
इस आधर पर यह खा जा सकता है | कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है | क्योंकि माता – पिता की आँखें भी हल्के रंग की है अत: हम प्रभावी लक्षण हल्के रंग को कहेंगें हांलाकि गहरे रंग का लक्षण अप्रभावी है |

प्रश्न 5. जैव-विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्रा किस प्रकार परस्पर संबंध्ति है।
उत्तर :
मानव के पूर्वज एक ही थे | धीरे – धीरे जीवों का विकास हुआ तथा इसी विकास के कारण जीव सरलता से जटिलता की ओर अग्रसर हुए तथा विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत हुए | इस प्रकार जैव विकास ही वर्गीकरण की सीढ़ी है |

प्रश्न 6. समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर :
वे अंग जो आधारभूत संरचना में एक समान है परन्तु भिन्न – भिन्न कार्य करते है , समजात अंग कहलाते है उदाहरण – पक्षी , जल – स्थलचर अन्य के चार पैर होते है परन्तु सबके कार्य भिन्न है | इसके ठीक विपरीत वे अंग जिनकी आधारभूत संरचना एक समान नंही होती परन्तु भिन्न – भिन्न जीवों में एक ही सामान कार्य करते है ,समरूप अंग कहलाते है |    उदाहरण –  चमगादड़ व पक्षी के पंख | चमगादड़ के पंख दिर्घित अंगुली के बीच की त्वचा के फैलने से परन्तु पक्षी पूरी अग्रबाहू की त्वचा के फैलने से बनती है |

प्रश्न 7. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर :
इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमें एक काले रंग का कुता व एक सफ़ेद रंग की कुतिया लेनी होगी | यदि दोनों के मध्य संकरण करने के पश्चात सभी संतानें काली रंग की उत्पन्न होती है तो हम कह सकते है कि काला रंग प्रभावी है तथा सफ़ेद रंग अप्रभावी है |

प्रश्न 8. विकासीय संबंध् स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर :
जीवाश्म उन जीवों के अवशेष है जो अब विलुप्त हो चुके है | जब हम उन जीवों के जीवाश्मों की संरचना की तुलना वर्तमान जीवों से करते है तो हमें पता चलता है की किस प्रकार जीवों का विकास हुआ तथा जीवाश्म विकास क्रम प्रणाली की भी व्याख्या करते है |

प्रश्न 9. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है?
उत्तर :
सन् 1929 में ब्रिटिश वैज्ञानिक जे .बी.एस. हाल्डेन ने बताया कि शायद कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेष्ण हुआ जो जीवो के लिए आवश्यक थे | प्राथमिक जीव अन्य रासायनिक संश्लेष्ण द्वारा उत्पन्न  हुए होगें | इसके आमेनिया , मीथेन , तथा हाइड्रोजन सल्फाइड के अणु परन्तु ऑक्सीजन के नंही थे | 100० C से कम ताप पर गैसों के मिश्रण में चिंगारियां उत्पन्न  करने पर एक सप्ताह बाद 15 प्रतिशत कार्बन सरल कार्बनिक यौगिकों में बदल गए | इनमें एमीनो अम्ल भी संश्लेषित हुए जो प्रोटीन के अणुओं को बनाते हैं | इस प्रकार अजैविक पदार्थो से जीवों की उत्पति हुई |

प्रश्न 10. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या  कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों वेफ विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर :
अलैंगिक जनन विभिन्नताएँ बहुत कम होती है क्योंकि DNA प्रतिकृति लगभग समान होती है अतः संतान में भी अत्यधिक समानता पाई जाती को जन्म देते है | इस प्रकिया में DNA की विभिन्नताएँ स्थायी होती  है तथ स्पीशीज के असितत्व के लिए भी लाभप्रद है |

प्रश्न 11. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है।
उत्तर :
लैंगिक प्रजनन में जिन सेट केवल एक DNA श्रृंखला के रूप में नंही होता | DNA के दो स्वतंत्र अणु दो गुणसूत्र मिलते है | लैंगिक जनन में संतान को दो गुणसूत्र मिलते है – एक पिटे तथा एक माता से | जो लक्षण प्रभावी होता है व्ही संतान में दिखाई देता है |

प्रश्न 12. केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव ( व्यष्टि ) के  लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं?
उत्तर :
हाँ , यह सत्य है | प्रकृति जीवों कण चयन करती है | वे जीव जो विभिन्नता दर्शाते है तथा स्वयं को पर्यावरण के अनुकूल बन लेते है जीवित रह पाते है | इसके विपरीत जो विभिन्नता नंही दर्शाते है , विलुप्त हो जाते है | iउदाहरण – पर्यावरण की प्रतिकूलता से बाघों की संख्या में कमी आना |

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मेंडल ने अपने प्रयोगों के लिए किस पौधे को चुना?
उत्तर :
मटर के पौधे को|

प्रश्न 2. जीन क्या होता हैं?
उत्तर :
जीन वह सूक्ष्मतम आनुवंशिक इकाई हैं, जो गुणसूत्रों में उपस्थित DNA का एक भाग होता हैं तथा लक्षण को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित करते हैं|

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NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 8 How do Organisms Reproduce (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 8 How do Organisms Reproduce (Hindi Medium)

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Chapter 8. जीव जनन कैसे करते है

अध्याय-समीक्षा

  • जीव अपने स्पीशीज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जनन करते हैं |
  • जनन करने वाले जीव संतति का सृजन करते हैं जो बहुत सीमा तक उनके समान होते हैं |
  • जीव को संतति उत्पन्न करने के लिए अत्यधिक उर्जा व्यय करनी पड़ती हैं |
  • आधारभूत स्तर पर जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है |
  • शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए उनका ब्लूप्रिंट भी समान होना  चाहिए |
  • कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी.एन.ए. के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का सन्देश होता है जो जनक से संतति पीढ़ी में जाता है |
  • कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संशलेषण हेतु सुचना निहित होती है |
  • यदि DNA में निहित सूचनाएं (सन्देश) भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी |
  • विभिन्न प्रोटीन के कारण शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आ जाती है |
  • जनन की मूल घटना डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृति (copy) बनाना है |
  • डी. एन. ए. (DNA ) की प्रतिकृतियाँ जनन कोशिकाओं में बनता है |
  • संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दुसरे से भिन्न होती हैं | जनन में होने वाली यह विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं |
  • विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं |
  • अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान ग्रहण करते हैं |
  • जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन ही जीव को विशिष्ट स्थान के योग्य बनाती है |
  • जीवों में जनन की दो विधियाँ है –
    • लैंगिक जनन
    • अलैंगिक जनन |
  • लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न जीवों में विभिन्नताएँ सबसे अधिक पायीं जाती हैं |
  • एकल जीवों में जनन अलैंगिक जनन के द्वारा होता है जबकि युगल जीव जिनमें नर एवं मादा दोनों होते है उनमें जनन प्रक्रिया लैंगिक जनन के द्वारा होता है |
  • अलैंगिक जनन प्रक्रिया में जीव विखंडन, खंडन, पुनर्जनन, मुकुलन, कायिक प्रवर्धन तथा बीजाणु समासंघ द्वारा जनन करते है |
  • एककोशिक जीवों में विखंडन द्वरा नए जीवों की उत्पति होती है |
  • विखंडन विधि दो प्रकार की होती है –
    • द्विखंडन
    • बहुखंडन
  • अमीबा में जनन द्विखंडन विधि के द्वारा होता है |
  • प्लैज्मोडियम जैसे जीव में जनन बहुखंडन के द्वारा होता है |
  • सरल संरचना वाले बहुकोशिक जीवों में जनन खंडन विधि के द्वारा होता है |
  • प्लेनेरिया में जनन पुनरुदभवन विधि के द्वारा होता है |
  • हाईड्रा एवं यीस्ट जैसे जीवों में पुनर्जनन की क्षमता वाली कुछ विशेष कोशिकाएँ होती है जहाँ से मुकुल बन जाता है और यही से एक नए जीव की उत्पत्ति होती है, जिसे मुकुलन कहा जाता है |
  • पौधों में बहुत से ऐसे एकल पौधे हैं जिनमें जनन के लिए विशेष कोशिकाएँ नहीं होती है ऐसे पौधे अपने कायिक भाग जैसे जड़, तना, तथा पत्तियों का उपयोग जनन के लिए करते हैं |
  • कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गए पौधों में विभिन्नताएँ कम पाई जाती है एवं अनुवांशिक रूप से जनक पौधे के समान होते हैं |
  • उत्तक संवर्धन तकनीक का उपयोग समान्यत: सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है |
  • नर में शुक्राणु एवं मादा में अंडाणु जनन कोशिकाएँ होती हैं |
  • डी. एन. ए. प्रतिकृति बनने के समय इनमें कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं यही परिणामी त्रुटियाँ जीव की समष्टि में विभिन्नताओं का स्रोत हैं |
  • प्रत्येक डी.एन.ए. (DNA) प्रतिकृति में नयी विभिन्नताओं के साथ-साथ पूर्व पीढ़ियों की विभिन्नताएँ भी संग्रहित होती रहती है |
  • जनन प्रक्रिया में जब दो जीव  भाग लेते हैं तो विभिन्नताओं की संभावना बढ़ जाती है |
  • लैंगिक जनन में दो भिन्न जीवों से प्राप्त डी.एन.ए. (DNA) को समाहित किया जाता है |
  • लैंगिक जनन करने वाले जीवों के विशिष्ट अंगों (जनन अंगों)  में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं की परत होती है जिनमें जीव की कायिक कोशिकाओं की अपेक्षा गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है तथा डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा भी आधी होती है | यें दो भिन्न जीवों की युग्मक कोशिकाएँ होती है जो लैंगिक जनन में युग्मन द्वारा युग्मनज (जायगोट) बनाती हैं जो संतति में गुणसूत्रों की संख्या एवं डी.एन.ए. (DNA) की मात्रा को पुनर्स्थापित करती हैं |
  • गतिशील जनन-कोशिका को नर युग्मक कहते है तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित रहता है, उसे मादा युग्मक कहते है |
  • पुष्पी पौधों में पुंकेसर नर जननांग होता है जो परागकण बनाता है जबकि स्त्रीकेसर मादा जननांग होता है |
    इसके तीन भाग होते है

    1. वर्तिकाग्र
    2. वर्तिका
    3. अंडाशय |
  • जिस पुष्प में केवल स्त्रीकेसर अथवा पुंकेसर ही उपस्थित रहता है तो ऐसे पुष्प एकलिंगीकहलाता है | जैसे – पपीता, तरबूज आदि |
  • जब पुष्प में स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर दो उपस्थिति हो तो यह पुष्प उभयलिंगी पुष्प कहलाता है | जैसे- गुडहल एवं सरसों आदि |
  • पुंकेसर के एक अन्य भाग जिसे परागकोष कहते है उसी पर परागकण चिपके रहते हैं |
  • परागकोशों से परागकणों का वर्तिकार्ग्र पर पहुँचने की प्रक्रिया को परागण कहते है |
  • यदि परागकणों का स्थानांतरण उसी पुष्प के परागकोशों से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर होता है तो ऐसे परागण को स्वपरागण कहते है |
  • जब किसी  अन्य पुष्प का परागकण का किसी दुसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण होता है तो ऐसे परागण को परापरागण कहते है |
  •  परापरागण में एक पुष्प के परागकण दुसरे पुष्प तक स्थानांतरण वायु, जल, अथवा प्राणी जैसे वाहकों के द्वारा संपन्न होता है |
  • परागित परागकण परागण के बाद वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है जहाँ अंडाशय में उपस्थित मादा युग्मक से संलयन होता है, इस प्रक्रिया को निषेचन कहते है |
  • बीजांड में भ्रूण विकसित होता है, जो बाद में बीज में परिवर्तित हो जाता है |
  • बीज का नए पौधे में विकसित होने की प्रक्रिया को अंकुरण कहते है |
  • रजोदर्शन से लेकर रजोनिवृति तक की अवधि स्त्रियों में जनन काल कहलाता है |
  • किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन-ऊत्तक परिपक्व (mature) होना प्रारंभ करते है यौवनारंभ कहलाता है

पाठगत-प्रश्न 

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प्रश्न 1: डी.एन.ए. प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
जनन की मूल घटना डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना है | डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है | जनन कोशिका में इस प्रकार डी.एन.ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है | जनन के दौरान डी.एन.ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाईन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो जीवों के विशिष्ट स्थान में रहने के योग्य बनाती है |

प्रश्न 2: जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों ?
उत्तर:
जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्योंकि – जीवों में विभिन्नता उनकी स्पीशीज (प्रजाति) की समष्टि को स्थायित्व प्रदान करता है | कोई भी एक समष्टि अपने निकेत के प्रति अनुकूलित होते हैं, परन्तु विषम परिस्थितियों में जब कोई निकेत उनके अनुकूल नहीं रह जाता है तब यही विभिन्नताएँ उनकी समष्टि के समूल विनाश से बचाता है | उनके समष्टि में कुछ ऐसे भी जीव होते है जो उन विषम परिवर्तन का प्रतिरोध कर पाते है और वे जीवित बच जाते है, परन्तु उनके समष्टि से कुछ व्यष्टि मर जाते हैं | अत: विभिन्नताएँ समष्टि की उत्तरजीविता बनाए रखने के लिए लाभदायक है |

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प्रश्न 1: द्विखंडन बहुखंडन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 8 How do Organisms Reproduce (Hindi Medium) 1
प्रश्न 2: बीजाणु द्वारा जनन से जीव किस प्रकार लाभान्वित होता है ?
उत्तर:
बीजाणु एक विशेष प्रकार का जनन संरचना है | जो बहुत हल्के होते हैं एवं कई कारणों से ये बीजाणु अपने गुच्छ से अलग हो इधर उधर फ़ैल जाते है | ये जीव के जनन भाग होते हैं जो विषम परिस्थतियों में इनकी मोटी भित्ति के कारण सुरक्षित रहते है और नम सतह के संपर्क में आते ही वृद्धि करने लगते हैं | अत: ये अनुकूल परिस्थितियों में ही वृद्धि करते हैं |

प्रश्न 3: क्या आप कुछ कारण सोंच सकते हैं जिससे पता चलता हो कि जटिल संरचना वाले जीव पुनरूदभवन द्वारा नयी संतति उत्पन्न नहीं कर सकते ?
उत्तर: 

प्रश्न 4: कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
कुछ पौधों को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग किया जाता है |

  1. जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन द्वारा ही किया जाता है |
  2. इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में बीज बीज द्वारा उगाये गए पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फुल लगने लगते है |
  3. इस विधि द्वारा उगाये गए पौधों में फल एवं फुल जनक पौधों के समान ही होते है |

प्रश्न 5: डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
क्योंकि – 

  1. डी.एन.ए. की प्रतिकृति का बनना जनन की मूल घटना है जो संतति जीव में जैव विकास के लिए उत्तरदायी होती है |
  2. कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए. में प्रोटीन संशलेषण हेतु सुचना निहित होती है | डी.एन.ए. की प्रतिकृति बनने के समय जिस तरह की सूचनाएं प्रतिकृति में शामिल होती है, बनने वाला प्रोटीन भी उसी प्रकार का बनता है |
  3. भिन्न-भिन्न प्रोटीन के कारण जीवों के शारीरिक अभिकल्प में भी विविधता आ जाती है | संतति कोशिकाएँ समान होते हुए भी किसी न किसी रूप में एक दुसरे से भिन्न होती हैं |
  4. डी.एन.ए. की प्रतिकृति में मौलिक DNA से कुछ परिवर्तन होता है, मूलत: समरूप नहीं होते अत: जनन के बाद इन पीढ़ियों में सहन करने की क्षमता होती है |
  5. डी.एन.ए. की प्रतिकृति में यह परिवर्तन परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है |
  6. डी.एन.ए. की प्रतिकृति में परिवर्तन विभिन्नताएँ लाती है जो जीवों की उत्तरजीविता बनाए रखती है |

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प्रश्न 1: परागण क्रिया निषेचन से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर :
परागण क्रिया –

  1. परागण से पराग कणों का वर्तिकाग्र तक का परिवहन परागण क्रिया कहलाता है |
  2. इसमें कोशिकाएँ संलागित नंही होती |
  3. इस क्रिया को पूर्ण करने के लिए प्राय: वाहकों का इंतजार करता  पड़ता है |

निषेचन –

  1. नर व मादा युग्मों का संयोजन निषेचन कहलाता है |
  2. इसमें नर व मादा कोशिकाएँ संलगित होती है |
  3. यह क्रिया संव्य होती है |

प्रश्न 2: शुक्राणुय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
शुक्राणुय एवं प्रोस्टेट ग्रंथि नर में होती है तथा इनका स्त्राव शुक्राणुओं को पोषण देता है | प्रोस्टेट ग्रंथि भी एक द्रव स्त्रावित करती है | इसी स्त्राव के माध्यम से शुक्राणु मादा जनन तंत्र में स्थानातरित होते है अतः ये जनन क्रिया के लिए महत्वपूर्ण नर ग्रंथियाँ है

प्रश्न 3: यौवनारंभ के समय लड़कियों में कौन से परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर : 
यौवनारंभ के समय लड़कियों 
में दिखने वाले परिवर्तन – 

  1. जननांगों के आस – पास बाल आना |
  2. वक्षों के आकार में वृद्धि होना |
  3. रजोस्त्राव आरम्भ आना |

प्रश्न 4: माँ के शरीर में गर्भस्थ भ्रूण को पोषण किस प्रकार प्राप्त होता है ?
उत्तर :
भ्रूण माँ के गर्भस्थ में पोषित होता है | माँ  के रक्त से पोषण प्रपात करता है |  माँ  से प्लेसेन्टा नामक ऊतक से जुड़ा होता है तथा इसी के माध्यम से जल , ग्लूकोज , ऑक्सीजन तथा अन्य पोषण तत्व प्राप्त करता है |

प्रश्न 5: यदि कोई महिला कॉपर-टी का प्रयोग कर रही है तो क्या यह उसकी यौन-संचारित रोगों से रक्षा करेगा ?
उत्तर :
नंही , कॉपर-टी यौन-संचारित रोगों का स्थान्नंतरण नंही रोकती |  कॉपर-टी केवल गर्भधारण को रोकती है |

अभ्यास

प्रश्न 1. अलैंगिक जनन मुकुलन द्वारा होता है |
(a)  अमीबा
(b)  यीस्ट
(c)  प्लैज्मोडियम
(d)  लेस्मानिया
उत्तर:
(b) यीस्ट

प्रश्न 2. निम्न में से कौन मानव में मादा जनन तंत्र का भाग नहीं है ?
(a) अंडाशय 
(b) गर्भाशय 
(c) शुक्रवाहिका 
(d) डिम्बवाहिनी  

उत्तर:
(c)  शुक्रवाहिका

प्रश्न 3. परागकोष में होते हैं –
(a) बाह्यदल
(b) अंडाशय
(c) अंड़प
(d) पराग कण

उत्तर:
(d)  पराग कण

प्रश्न 4. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:

  1. लैंगिक जनन से अधिक विभिन्नताएँ उत्पन्न होती है जो स्पीशीज के असितत्व के लिए आवश्यक है |
  2. लैंगिक जनन में दो विभिन्न जीव हिस्सा लेते है | अतः संयोजन अतः अद्भुत होता है |

प्रश्न 5. मानव में वृषण के क्या कार्य हैं ?
उत्तर :
वृषण वृषण कोष में स्थित होते है | वृषण शुक्राणु उत्पन्न करते है | वृषण में टैस्टोस्टीरोन  हार्मोन स्त्रवित होता है | वृषण नर जननांगो का अहम हिस्सा है वृषण द्वारा अतिरिक्त के  लक्षणों को भी नियंत्रित करता है | वृषण द्वारा स्त्रवित हार्मोन शुक्राणु को पोषण प्रदान करते है इसके अतिरिक्त ये स्त्राव ही शुक्राणुओ के मादा स्थानांतरण में सहायता होते है |

प्रश्न 6. ऋतुस्राव क्यों होता है ?
उत्तर :
अण्डाणु का निषेचन शुक्राणुओं द्वारा होता है ऐसा न होने पर अण्डाणु लगभग एक दिन तक जीवित रहता है | इसके पश्चात गर्भाशय की मोटी तथा स्पंजी दीवार टूटकर रक्त व म्यूक्स में बदल जाती है | यह स्त्राव मादा योनि के रस्ते स्त्रावित हो जाता है | इसे ऋतुस्राव कहते है | यह स्त्राव हर माह होता है |

प्रश्न 7. पुष्प की  अनुदैर्घ्य काट का नामांकित चित्र बनाइए |
उत्तर: 

प्रश्न 8. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:

  1. अवरोधक विधियाँ : इन विधियों को शरीर करे बाहर अर्थात ऊपरी त्वचा पर प्रयोग किया जाता है जैसे – नर के लिए कंडोम , मादा के लिए मध्यपट | ये शक्राणु को मादा के अंडोम से नहीं मिलने देती |
  2. रासायनिक विधियाँ :  ये विधियाँ मादा द्वारा प्रयोग में ले जाती है | मादा मुखीय गोलियों द्वारा गर्भधारण को रोक सकती है | मुखीय गोलियों विशेषत : शरीर के हार्मोन्स में बदलाव उत्पन्न कर देती है परन्तु कई बार इनके बुरे प्रभाव भी पड़ जाते है |
  3. लूप अथवा कॉपर- टी : गर्भशय में स्थापित करके भी गर्भधारण को रोक जा सकता है |

प्रश्न 9.  एक-कोशिक एवं बहुकोशिक जीवों की जनन पद्धति में क्या अंतर है ?
उत्तर:
एक – कोशिक जीवों में सरल संरचना होती है अतः उनमें अलैंगिक प्रजनन होता है तथा जनन के लिए विशेष अंग नंही होते | इनमे जनन दो तरह से होता है – द्विखंदन तथा बहुविखंडन | बहुकोशिकीय जीवों में  जटिल सरंचना के कारण जनन तंत्र होते है अतः उनमें लैंगिक प्रजनन भी होता है तथा अलैंगिक भी |

प्रश्न 10. जनन किसी स्पीशीज की समष्टि के स्थायित्व में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर :
जनन की मूल रचना DNA की प्रतिर्कति बनाता है | कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाएँ  DNA की दो प्रतिर्कति बनती है यह जीव की संरचना एंव पैटर्न के लिए उत्तरदायी है DNA की ये प्रतिर्कतियाँ विलग होकर ‘विभाजित होती है | व दो कोशिकाओं का निर्माण करती है | इस प्रकार कुछ विभिन्नता आती है जो स्पीशीज के असितत्व के लाभप्रद है |

प्रश्न 11. गर्भनिरोधक युक्तियाँ अपनाने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर :
गर्भधारण युकितयाँ गर्भधारण को रोकने हेतु अपनाई जाती है |  जीव प्रजनन क्रिया करते है एंव जीवों की वृद्धि करते है इस प्रकार यदि यह क्रिया निरंतर चलती रहे तो पृथ्वी पर जनसंख्या  विस्फोट हो जाए इसके अतिरिक्त गर्भधारण के समय स्त्री के शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | अतः अधिक बार यह क्रिया उसके लिए हानिकारक हो सकती है | इस प्रकार गर्भ निरोधक  युकितयाँ  परम आवश्यक है |

अतिरिक्त एवं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर: 

प्रश्न 1 : डी. एन. ए. प्रतिकृति (COPY) का प्रजनन में क्या महत्व हैं ?
उत्तर :
जनन की मूल घटना डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना है । डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रासायनिक क्रियाओं का उपयोग करती है । जनन कोशिका में इस प्रकार डी. एन. ए. की दो प्रतिकृतियाँ बनती है। जनन के दौरान डी. एन. ए. प्रतिकृति का जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है ।

प्रश्न 2 : जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के जीवित रहने के लिए किस प्रकार उतरदायी हैं?
उत्तर :
जीवों में विभिन्नता ही उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में बने रहने में सहायक हैं। शीतोष्ण जल में पाए जाने वाले जीव़ परिस़्िथतिक तं़त्ऱ के अनुकुल जीवित रहते है। यदि वैश्विक उष्मीकरण के कारण जल का ताप बढ जाता हैं तो अधिकतर जीवाणु मर जाएगें, परन्तु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ जीवाणु ही खुद को बचा पाएगें और वृद्धि कर पाएगें । अतः जीवों में विभिन्नता स्पीशीज की उतरजीविता बनाए रखने में उपयोगी हैं ।

प्रश्न 3 : शरीर का अभिकल्प समान होने के लिए जनन जीव के अभिकल्प का ब्लूप्रिंट तैयार करता है। परन्तु अंततः शारीरिक अभिकल्प में विविधता आ ही जाती है। क्यों?
उत्तर :

क्योंकि कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी. एन. ए. के अणुओं में आनुवांशिक गुणों का संदेश होता है जो जनक से संतति पीढी में जाता है । कोशिका के केन्द्रक के डी. एन. ए.  में प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना निहित होती हैं इस सूचना के भिन्न होने की अवस्था में बनने वाली प्रोटीन भी भिन्न होगी । इन विभिन्न प्रोटीनों के कारण अंततः शारीरिक अभिकल्प में विविधता आ ही जाती है।

प्रश्न 4 : डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक क्यो है ?
उत्तर :
डी. एन. ए. की प्रतिकृति बनाना जनन के लिए आवश्यक हैं क्योंकि-

  1. डी. एन. ए. की प्रतिकृति संतति जीव में जैव विकास के लिए उतरदायी होती हैं ।
  2. डी. एन. ए. की प्रतिकृति में मौलिक डी. एन. ए. से कुछ परिवर्तन होता है मूलतः समरूप नहीं होते अतः जनन के बाद इन पीढीयों में सहन करने की क्षमता होती है ।
  3. डी. एन. ए. की प्रतिकृति में यह परिवर्तन परिवर्तनशील परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता प्रदान करती है ।

प्रश्न 5 : कुछ पौधें को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग क्यों किया जाता है ?
या
प्रश्न 5 : कायिक प्रवर्धन के लाभ लिखिए ।  

उत्तर :
कुछ पौधें को उगाने के लिए कायिक प्रवर्धन का उपयोग करने के कारण निम्न हैं ।

  1. जिन पौधों में बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है उनका प्रजनन कायिक प्रवर्धन विधि के द्वारा ही किया जाता हैं ।
  2. इस विधि द्वारा उगाये गये पौधे में बीज द्वारा उगाये गये पौधों की अपेक्षा कम समय में फल और फूल  लगने लगते है।
  3. पौधों में पीढी दर पीढी अनुवांशिक परिवर्तन होते रहते हैं । फल कम और छोटा होते जाना आदि, जबकि कायिक प्रवर्धन द्वारा उगाये गये पौधों जनक पौधें के समान ही फल फूल लगते हैं ।

प्रश्न 6 : निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
(i) यौवनारंभ क्या है ?

(ii)  यह किन शारीरीक परिवर्तनों के साथ शुरू होता है ?
(iii)  लडके तथा लडकी में यौवनारंभ कब शुरू होता है ।
(iv)  यौवनावस्था के लक्षणों को नियंत्रित करने वाले नर तथा मादा हार्मोनो के नाम लिखिए ।

उत्तर :
(i) किशोरावस्था की वह अवधि जिसमें जनन उतक परिपक्व होना प्रारंभ करते है । यौवनारंभ कहा जाता है ।
(ii) लड़कों तथा लडकियों में यौवनारंभ निम्न शारिरिक परिवर्तनों के साथ आरंभ होता है ।
लडकों में – दाढ़ी मूँछ का आना , आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, आदि ।
लडकियों में – स्तन के आकार में वृद्धि होना, आवाज में भारीपन, काँख एवं जननांग क्षेत्र में बालों का आना , त्वचा तैलिय हो जाना, और रजोधर्म का होने लगना , जंघा की हडियो का चौडा होना, इत्यादि।
आदि ।
(iii) लडकियों में यौवनारंभ 12 – 14 वर्ष में होता है जबकि लडको में यह 13 – 15 वर्ष में आरंभ होता है ।
(iv)

  • नर हार्मोन – टेस्टोस्टेरॉन
  • मादा हार्मोन – एस्ट्रोजन एवं प्रोजेस्ट्रोन

प्रश्न 7 : पुष्पी पादप में निषेचन प्रक्रिया को समझाने के लिए बिजाण्ड का नामांकित चित्र बनाइए तथा निषेचन की प्रक्रिया को लिखे ।
उत्तर :
पौधे में परागण के बाद  निषेचन होता हैं। जब परागकण वर्तिकाग पर एकत्रित हो जाते है। परागनलिका बीजांड में एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा प्रवेश करती है जिसे बीजांडद्वार कहते है | परागनलिका से दो पुंयुग्मक भ्रुणकोष में प्रवेश करते हैं भ्रूणकोष  में अंड रहता हैं। नर तथा मादा युग्मको का  यह संलयन युग्मक संलयन कहलाता हैं जिसको निषेचन कहते है। तथा इससे युग्मनज बनता है। निषेचन के बाद अंडाशय फल में तथा बीजांड बीज में विकसित होते है।

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 8 How do Organisms Reproduce (Hindi Medium) 1

प्रश्न 8 : दोहरा निषेचन क्या है ?
उत्तर :
पुष्पी पादप में संलयन क्रिया में तीन केंद्रक होते है एक युग्मक तथा दो ध्रुविय केन्द्रक । अत: प्रत्येक भ्रूणकोष में दो संलयन, युग्मक – संलयन तथा त्रिसंलयन होने की क्रिया विधि को दोहरा निषेचन कहते है।

प्रश्न 9 : मानव में नर तथा मादा जननांग क्या है ? प्रत्येक का कार्य लिखो ।
उत्तर :
मानव में नर जननांग का नाम वृषण है तथा मादा जननांग का नाम अंडाशय है।वृषण का कार्य शुक्राणु उत्पन्न करना तथा नर हॉर्मोन टेस्टोस्टीरोन का स्राव करना है जबकि अंडाशय का कार्य अंडाणु उत्पन्न करना तथा मादा हॉर्मोन एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्ट्रॉन का स्राव करना है।

प्रश्न 10 : आर्वत-चक्र के मध्य में यदि मैथुन सम्पन्न हो तभी निचेषन संभव हैैं। कारण स्पष्ट किजिए।
उत्तर :
आर्वत-चक्र के मध्य में यदि मैथुन सम्पन्न हो तभी निचेषन संभव हैैं। कारण स्पष्ट है क्योकि आर्वत – चक्र के मध्य में अंडाशय से अंडाणु का उत्सर्जन होता है। अंडोत्सर्ग चक्र के 11वें से 16 वें दिन के बीच होता है। इसी आवर्त-चक्र के मध्य में अंडाणु गर्भाशय में उपस्थित रहता है निषेचन के लिए अंडाशय में अंडाणु का उपस्थित होना आवश्यक है।

प्रश्न 11 : शिशु जन्म नियंत्रण की विधियो का वर्णन करो ।   
उत्तर :  

  1. रोधिका विधि – रोधिका विधियो में कंडोम, मध्यपट, और गर्भाशय ग्रीवा जैसी भौतिक विधियों का उपयोग होता है।
  2. रासायनिक विधि – महिलाओ द्वारा गर्भ नियंत्रण हेतु विशिष्ट औषधियो का उपयोग ही रासायनिक विधि कहलाती है। जैसे -गर्भ निरोधक गोलिया माला – डी आदी।
  3. शल्य क्रिया विधि – शल्य क्रिया में पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) तथा स्त्रियों में स्त्रिनसबंदी को (ट्बेकटॉमी) कहते है।
  4. IUCD (Intra Uterine Contraceptive Devices) – इस विधि के अंतर्गत कॉपर-टी जैसी युक्तियों का प्रयोग किया जाता है जो एक विशेष सिद्धांत पर कार्य करता है और निचेचन की क्रिया को रोक देता है |

प्रश्न 12 : IUCD, HIV, AIDS, और OC को विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर : 

  • IUCD – इन्टरायुटेराइन कॉन्ट्रासेवटिव डिवाइसेज।
  • HIV – ह्युमन इम्युनो वाइरस।
  • AIDS – एक्वायर्ड इम्युनो डेफिसेंसी सिड्रोंम।
  • OC – ओरल कॉन्ट्रासेवटिव ।

प्रश्न 13 : जन्म नियंत्रण की शल्य विधि का वर्णन करो ।
उत्तर :
शल्य क्रिया में पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) तथा स्त्रियों में स्त्रिनसबंदी को (ट्युबेकटॉमी) कहते है। पुरूष नसबंदी (वासेक्टॉमी) – इसमें वास डिफ्रेस नामक नली को शल्य क्रिया द्वारा काट कर अलग कर दिया जाता है। स्त्रिनसबंदीे (ट्बेकटॉमी) – इसमें फैलोपियन ट्युब नामक नली को शल्य क्रिया द्वारा काट कर अलग कर दिया जाता है।

प्रश्न 14 : लैंगिक संचारित रोगों को परिभाषित किजिए और इनके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर –
कुछ संक्रामक रोग लैंगिक संसर्ग द्वारा एक संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक फैलते है। ऐसे रोगों को लैंगिक संचारित रोग (ज्क्) कहते है। जैसे – सुजाक;गोनिरिया),आशतक;सिफिलिस) और एड्स भी लैंगिक संचारित रोग है।

प्रश्न 15 : आर्वत चक्र का वर्णन करो ।
उत्तर –
प्रत्येक 28 दिन बाद अंडाशय तथा गर्भाशय में होनें वाली घटना ऋतुस्राव द्धारा चिन्हित होती है तथा आर्वत चक्र या स्त्रियों का लैगिक चक्र कहलाती है।

प्रश्न 16 : द्वि-विखंडन तथा बहु- विखंडन में अंतर बताइए।
उत्तर –
जब एक कोशिकिय जीव से दो नए जीवों की उत्पति होती है। अत: इसे द्वि-विखंडन कहते है। बहु-विखंडन में पहले केंद्रकिय विभाजन होता है। जनक कोशिका के कोशिकाद्रव्य का छोटा सा खण्ड संतति केंद्रक के चारो ओर बाह्य झिल्ली का निर्माण करता है। जितनी संतति कोशिका होती हैं उतनी संतति जीव बनते है। इस प्रकार के विखंडन को बहु-विखंडन कहते है।

प्रश्न 17 : ऊतक संवर्धन तकनीक क्या है ? इस तकनीक का उपयोग किस प्रकार के पौधों संवर्धन के लिए किया जाता है।
उत्तर –
ऊतक संवर्धन तकनीक में पौधों के ऊतक अथवा उसकी कोशिकाओं को पौधे के शीर्ष के वर्धमान भाग से पृथक कर नए पौधे उगाए जाते है । ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा सिधी एकल पौधे से अनेक संक्रमण मुक्त परिस्थितियों में उत्पन्न किए जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग सामान्यत: सजावटी पौधों के संवर्धन में किया जाता है ।

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. किन्हीं तीन उभयलिंगी जीवों के नाम लिखिए। 
उत्तर –

  1.  फीताकृमि
  2. केंचुआ
  3. सितारा मछली ।

प्रश्न 2. भ्रूण अपना भोजन किस प्रकार प्राप्त करता है ?
उत्तर –
अपरा ( प्लासेंटा से ) ​

प्रश्न 3. नर तथा मादा जननांगो के नाम लिखो ।
उत्तर –
नर में वृषण होता है जो शुक्राणुओ को उत्पन्न करता है। मादा में अंडाशय होता है जो अंडाणुओ को उत्पन्न करता है।

प्रश्न 4. निषेचन किसे कहते हैं ?
उत्तर –
नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अंडाणु दोनो युग्मको के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते हैं।

प्रश्न 5. बाह्य निषेचन क्या है ?
उत्तर –
मछलियो तथा उभयचरो में निषेचन समान्यत: शरीर के बाहर होता हैं। अत: इसे बाह्य निषेचन कहते हैं।

प्रश्न 6. रजोदर्शन तथा रजोनिवृति में अंतर स्पष्ट किजिए ।
उत्तर –

  • रजोदर्शन – यौवनारंभ के समय रजोधर्म के प्रारंभ को रजोदर्शन कहते है। यह 12 से 14 वर्ष की आयु की युवतियो में प्रारंभ होता हैं ।
  • रजोनिवृति – जब स्त्रियो के रजोधर्म 50 वर्ष की आयु में ऋतुस्राव तथा अन्य धटना चक्रो की समाप्ती रजोनिवृति कहलाती है।

प्रश्न 7. परागण किसे कहते है ? इसके विभिन्न प्रकारो का नाम लिखो ।
उत्तर –
परागकणों का परागकोष से वर्तिकाग्र तक के स्थानान्तरण को परागण कहते है।
परागण दो प्रकार के होते है।

  1. स्व – परागण 
  2. परा – परागण 

प्रश्न 8. स्व – परागण किसे कहते है ?
उत्तर –
एक पुष्प के परागकोष से उसी पुष्प के अथवा उस पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण स्व – परागण कहलाता है।

प्रश्न 9. परा – परागण किसे कहते है।
उत्तर –
एक पुष्प के पराकोष से उसी जाति के दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणो का स्थानान्तरण परा – परागण कहलाता है

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 8 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 7 Control and Coordination (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 7 Control and Coordination (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Science in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 7 Control and Coordination.

Chapter 7. नियंत्रण एवं समन्वय

पाठगत-प्रश्न:

पेज – 132 

1. प्रतिवर्ती क्रिया तथा टहलने के  बीच क्या अंतर है?
उत्तर :
प्रतिवर्ती क्रिया मस्तिष्कके मेरुरज्जू  हिस्से द्वारा नियंत्रित की जाती है पतन्तु टहलना  मस्तिष्क द्वारा सोची  समझी क्रिया है | प्रतिवर्ती क्रिया में बहुत कम एमी क्गता है परन्तु टहलना में सुचना को पेशियों तक पहुँचने में काफी समय लगता है |

2. दो तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन)  के मध्य अंतर्ग्रथन ( सिनेप्स) में क्या होता है?
उत्तर :
अंतर्ग्रथन दो तंत्रिका कोशिकाओं के बीच में छोटा खाली स्थान होता है | विद्युतीय तरंगो के रूप में आने वाला तंत्रिका आवेग एक रसायन को स्त्रवित कृत है जो खाली स्थान की दरार में आ जाता है इसी प्रकार अंतर्ग्रथन  को पार कर ये रसायन अगली तंत्रिका कोशिका में पहुँच जाते है |

3. मस्तिष्क का कौन सा भाग शरीर की स्थिति तथा संतुलन का अनुरक्षण करता है?
उत्तर :
पश्च मस्तिष्क का अनुमस्तिष्क |

4. हम एक अगरबत्ती की गंध का पता के से लगाते हैं?
उत्तर :
विभिन्नअंगो में सुचना पाने के  लिए मस्तिष्कमें कुछ केन्द्र होते है | जो अग्रमस्तिष्क में उपस्थित होते है | गंध के लिए भित्तीय पालि होती है |

5. प्रतिवर्ती क्रिया में मस्तिष्क की क्या भूमिका है?
उत्तर :
प्रतिवर्ती क्रिया  मस्तिष्कके नियंत्रण  में नहीं होती है | स्त्रवित प्रतिवर्ती क्रियाएँ मेरुरज्जू  द्वारा नियंत्रित की जाती है |  मस्तिष्क प्रतिवर्ती क्रिया में होने वाले कार्य की सुचना अपने अंदर एकत्रित कर लेता है |

पेज – 136 

1. पादप हॉर्मोन क्या हैं?
उत्तर :
पादप अपने विभिन्न भागों से कुछ महत्वपूर्ण रसायन स्त्रवित करते है जो पादपो की वृद्धि तथा अन्य क्रियाओं  को  नियंत्रित करते है उन्हें पादप हॉर्मोन  कहते है |

2. छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर : 
छुई-मुई पादप की पत्तियों की गति, प्रकाश की ओर प्ररोह की गति से भिन्न है कयोंकि प्रकाश व प्ररोह  गति अनुवर्तन गति होती है जो ऑकिस्न हॉर्मोन द्वारा निंयत्रित होती है | परन्तु  छुई-मुई पादप की पत्तियों छूने के कारण फैलतीव सिकुड़ती है जो प्रकाश से नियंत्रित नहीं होती है |

3. एक पादप हॉर्मोन का उदाहरण दीजिए जो वृद्धि को बढ़ाता है।
उत्तर:
ऑकिस्न हॉर्मोन |

4. किसी सहारे के  चारों ओर एक प्रतान की वृद्धि में ऑक्सिन किस प्रकार सहायक है?
उत्तर :
प्रतान  एक संवेदीशील पौधाहै इसके किसी शेयर के सम्पर्क में आते ही जल तथा ऑक्सिन विपरीत दिशा में गतिशील हो जाते है | इस प्रकार कोशिकाएँ लंबी व तन्य हो जाती है और प्रतान मुड़कर आधार से लिपट जाता है |

5.  जलानुवर्तन दर्शाने के  लिए एक प्रयोग की अभिकल्पना कीजिए ?
उत्तर : 
जलानुवर्तन दर्शाने के लिए प्रयोग – एक पोधा ले  उसे गमले में उगाए उस की मिट्टी एक ओर  से गीली तथा दूसरी ओर से सुखी होनी चाहिए | कुछ दिनों बाद उसका परिक्षण करने पर हम पाएगे की पौध की जड़े जलीय मिट्टी की ओर गतिशील होती है की इस अभिकल्पना से हम पाते है की जडो में घनात्मक जलानुवर्तन होता है |

पेज – 138

1. जंतुओं में रासायनिक समन्वय कैसे होता है?
उत्तर :
जन्तुओं में विशेष ग्रथियँ कुछ हॉर्मोन स्त्रवित करती है | ये हॉर्मोन ही रासायनिक समन्वय करते है |

2. आयोडीन युक्त नमक के  उपयोग की सलाह क्यों दी जाती है?
उत्तर :
आयोडीन युक्त नमक के  उपयोग की सलाह इसलिए दी जाती है कियोंकि शरीर में कार्बोहाइड्रेट ,वसा तथा प्रोटीन के अपचन को थाइरॉइड नियंत्रित करती है | यह ग्रंथि थाइरॉक्सिन नामक  हॉर्मोन स्त्रावित करती है  इस ग्रंथि  के लिए  आयोडीन की आवश्कता होती है  आयोडीन की कमी से घेंघा रोग हो जाता है |

3. जब एड्रीनलीन रुधिर में स्रावित होती है तो हमारे शरीर में क्या अनुक्रिया होती है?
उत्तर :
एड्रीनलीन क रक्त में स्त्रवित होने से ह्रदय तीव्रता से धडकता है , हमारी मांसपेशियों की बढ़ जाती है तथा श्वसन दर भी बढ़ जाता है |

4. मधुमेह के  कुछ रोगियों की चिकित्सा इंसुलिन का इंजेक्शन देकर क्यों की जाती है?
उत्तर :
रक्त में बढ़ी हुई शर्करा के निंयत्रण हेतु इंसुलिन की पड़ती है | यह  हॉर्मोन इसे नियंत्रित करता है तथा यह अग्नाशय ग्रंथि द्वारा स्त्रवित होता है | मुधमेह के रोगियों के इसका स्त्राव कम होता है अत:  इंसुलिन का इंजेक्शन रक्त में  शर्करा को नियंत्रित  कर देता है |

अभ्यास

1. निम्नलिखित में से कौन-सा पादप हॉर्मोन है?
(a)  इंसुलिन
(b)  थायरॉक्सिन
(c)  एस्ट्रोजन
(d)  साइटोकाइनिन
उत्तर : 
(d)  साइटोकाइनिन |

2. दो तंत्रिका कोशिका के  मध्य खाली स्थान को कहते हैं|
(a)  द्रुमिका
(b)  सिनेप्स
(c)  एक्सॉन
(d)   आवेग
उत्तर : 
(b)  सिनेप्स |

3. मस्तिष्क उत्तरदायी है
(a)  सोचने के  लिए
(b)  हृदय स्पंदन के लिए
(c)  शरीर का संतुलन बनाने के  लिए
(d)  उपरोक्त सभी
उत्तर :
(d)  उपरोक्त सभी |

4. हमारे शरीर में  ग्राही का क्या कार्य है? ऐसी स्थिति पर विचार कीजिए जहाँ ग्राही उचित प्रकार से कार्य नहीं कर रहे हों। क्या समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं?
उत्तर :
ग्राही सवेदनशील अगो में होती है | ये पर्यावरण से सूचनाएँ ग्रहण करते है| इनके द्वारा व्यकित पर्यावरण से स्वयं संतुलित करता है यदि ये उचित तरीके से कार्य न करें  तो मस्तिष्क सूचनाएँ ग्रहण नहीँ कर पायेगा या देर से करेगा अतः व्यकित असुरक्षित हो जाएगा |

5. एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरॉन) की संरचना बनाइए तथा इसके  कार्यों का वर्णन कीजिए। \
उत्तर :
तंत्रिका कोशिका  (न्यूरॉन)तंत्रिका  तंत्र की क्रियात्मक व संरचनात्मक इकाई है | यह तीन हिस्सों में बंटी होती है |

  1. द्रुमिका ,
  2. कोशिकाय ,
  3. एक्सॉन

हमारे शरीर में संवेदी तंत्रिका तथा तंत्रिका होती है | संवेदी तंत्रिका ग्राही अंगो से उद्दीपन प्राप्त कर सुचना को मेरुरज्जु तक ले जाती है तथा वाहक मस्तिष्क से सुचना अंगो तक पहुँचती है |

6. पादप में प्रकाशानुवर्तन किस प्रकार होता है?
उत्तर :
जड़ प्रकाश के विपरीत मुड़कर अनुक्रिया करती है तथा तने प्रकाश की दिशा में मुड़कर , इसे प्रकाशावर्तन कहते है | पादप में ऑकिस्न  हॉर्मोन स्त्रावित होता है | यह सूर्य के प्रकाश में तने के अंधेरमय भाग में आ जाता है और वहाँ की कोशिकोओं को लंबा कर उन्हें प्रकाश की ओर  झुका जाता है | इसे घनात्मक प्रकाशावर्तन कहते है | जड़े ऋणात्मक दर्शाती है |

7. मेरुरज्जु आघात में किन संकेतों के  आने में व्यवधान होगा?
उत्तर :
प्रतिवर्ती क्रियाएँ सम्पन्न नहीं हो पाएंगी | इसके अलावा सभी सूचनाएँ ठीक प्रकार से संचारित नहीं होगी |

8. पादप में रासायनिक समन्वय किस प्रकार होता है?
उत्तर :
पादप कोशिकाएँ हार्मोन स्त्रावित करती है | ये हार्मोन वृद्धि , विकास तथा विभाजन को निंयत्रित करते है | ये  हार्मोन ही रासायनिक समन्वय स्थापित करते है |

9. एक जीव में नियंत्रण एवं समन्वय के  तंत्र की क्या आवश्यकता है?
उत्तर :
यदि जीव में नियंत्रण एंव समन्वय का तंत्र न हो तो कोशिकाएँ जीव की इच्छानुसार कार्य नहीं करेंगी | अतः इन पर  नियंन्त्रण अति आवश्यक है | बहुकोशिकीय जीवों में सामान्य  क्रियाओं के लिए यह प्रभावशाली है |

10. अनैच्छिक क्रियाएँ तथा प्रतिवर्ती क्रियाएँ एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : 
अनैच्छिक क्रियाएँ : 

  1. इन  क्रियाएँ  को मस्तिष्क नियंत्रित करता है – ह्रदय का धडकन , साँस लेना |
  2. ये  क्रियाएँ सम्पन्न होने में ज्यादा सनी लेती है |

प्रतिवर्ती क्रियाएँ : 

  1. इन क्रियाओं को मेरुरज्जू द्वारा नियंत्रित किया जाता है | उदाहरण : गर्म पदार्थ को स्पर्श करने पर हाथ का हटना |
  2. ये क्रियाएँ सम्पन्न होने में बहुत कम समय लेती है |

11. जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय के  लिए तंत्रिका तथा हॉर्मोन क्रियाविधि की तुलना तथा व्यतिरेक ( CONTRAST ) कीजिए।
उत्तर :
तंत्रिका क्रिया विधि :

  1. तंत्रिका तंत्र संवेदी सूचनाएँ प्राप्त कर अपना संदेश भेजता है तथा  नियंत्रण  करता है |
  2. शरीर में तंत्रिका तंत्र अपना जाल बना लेता है तथा इसकी अपनी संरचनात्मक इकाई होती है|

प्रतिवर्ती  क्रियाएँ : 

  1. शरीर के अंगो में महत्वपूर्ण ग्रंथि ही हार्मोन स्त्रावित होते है ये  हार्मोन कई क्रियाएँ  उदाहरण –  वृद्धि , विकास , जनन आदि को नियंत्रित करते है |
  2. हार्मोन स्वयं ही शरीर में स्त्रावित होते है |

12. छुई-मुई पादप में गति तथा हमारी टाँग में होने वाली गति के तरीके में क्या अंतर है?
उत्तर :
छुई-मुई पादप  में गति : 

  1. इस पौधे में गति का आधार स्पर्श है |
  2. यहाँ गति पतियों के  झुकने व खिलने पर आधारित है |
  3. यहाँ  पतियोंके आकार में भी परिवर्तन होता है |

हमारी टाँग में होने वाली गति  : 

  1. इसमें गति का आधार मानव तंत्रिका तंत्र है |
  2. यहाँ गति पेशियों के सिकुड़ने व फैलने पर आधारित है |
  3. यहाँ  पैर या उसकी पेशियों के आकार में कोई परिवर्तन नहीं है |

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

1. तंत्रिका कोशिका के भागों को पहचानिए:
(i) जहाँ सूचनाएँ उपर्जित की जाती हैं |
(ii) जिससे होकर सूचनाएँ विद्युत आवेग की तरह यात्रा करती हैं|
(iii) जहाँ इस आवेग का परिवर्तन रासायनिक संकेत में किया जाता है जिससे यह आगे संचरित हो सके ।
उत्तर:
(i) द्रुमाकृतिक सिरे
(ii) द्रुमिका
(iii) तंत्रिकाक्ष (एक्सॉन)

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 7 are helpful to complete your homework.

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 6 Life Processes (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 6 Life Processes (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Science in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 6 Life Processes.

Chapter 6. जैव-प्रक्रम

अध्याय-समीक्षा 

  • जैव प्रक्रम : वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण कार्य करते है जैव प्रक्रम कहलाता है।
  • पोषण : प्रत्येक जीवधारी को अनुरक्षण प्रक्रम के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है जो उर्जा जीवधारी पोषक तत्वों के अंर्तग्रहण से प्राप्त करता है । इस उर्जा के स्रोत को शरीर के अंदर लेने और उपयोग के प्रक्रम को पोषण कहते है।
  • पोषण दो प्रकार के होते है :
    1. स्वपोषी पोषण
    2. विषमपोषी पोषण |
  • हमारे शरीर में क्षति तथा टूट-फुट रोकने के लिए अनुरक्षण प्रक्रम की आवश्यकता होती है जिसके लिए उन्हें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा एकल जीव के शरीर के बाहर से आती है।
  • उपचयन-अपचयन अभिक्रियाएँ अणुओं के विघटन की कुछ सामान्य रासायनिक युक्तियाँ हैं। इसके लिए बहुत से जीव शरीर के बाहरी स्रोत से ऑक्सीजन प्रयुक्त करते हैं।
  • शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है।
  • एक एक-कोशिकीय जीव की पूरी सतह पर्यावरण के  संपर्क में रहती है। अतः इन्हें भोजन ग्रहण करने वेफ लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने  लिए या वर्ज्य पदार्थ के निष्कासन के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती है।
  •  जैव प्रक्रम के अंतर्गत आने वाले प्रक्रम हैं :
    1. पोषण
    2. श्वसन
    3. वहन
    4. उत्सर्जन
  • पोषण :
    जीवों द्वारा जटिल कार्बन पदार्थों को जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा सरल अणुओं में परिवर्तित कर उपभोग करना पोषण कहलाता है |
  • श्वसन :
    शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है।
  • वहन :
    वहन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में आवश्यक पोषक तत्व पहुंचाए जाते है जो शरीर के अनुरक्षण का कार्य करते हैं |
  • उत्सर्जन :
    शरीर से हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं |
  • जटिल पदार्थों के सरल पदार्थों में खंडित करने के लिए जीव कुछ जैव उत्प्रेरक का उपयोग करते हैं जिन्हें एंजाइम कहते हैं | 
  • सभी हरे पौधें स्वपोषी पोषण करते हैं | 
  • विषमपोषी पोषण तीन प्रकार का होता है | 
    1. मृतजीवी पोषण
    2. परजीवी पोषण
    3. प्राणी समभोजी पोषण |
  • हरे पौधों द्वारा सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं |
  • कुछ कोशिकाओं में हरे रंग के बिदु दिखाई देते हैं। ये हरे बिंदु कोशिकांग हैं जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते हैं इनमें क्लोरोफिल होता है।
  • पौधों के पत्तियों पर छोटे-छोटे असंख्य छिद्र पाए जाते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं |
  • रंध्र का कार्य
    1. गैसों का आदान-प्रदान भी इन्ही रंध्रों के द्वारा होता है |
    2. वाष्पोत्सर्जन की क्रिया रंध्रों के द्वारा होती है |
  • स्थलीय पौधे प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिटटी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्पफोरस, लोहा तथा मैग्नीशियम सरीखे अन्य पदार्थ भी मिट्टी से लिए जाते हैं।
  • नाइट्रोजन एक आवश्यक तत्व है जिसका उपयोग प्रोटीन तथा अन्य यौगिकों के संश्लेषण में किया जाता है।

पाठगत-प्रश्न

पेज – 105

Q1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों
अपर्याप्त है?
उत्तर :
विसरण क्रिया द्वारा बहुकोशिकीय जीवो में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग में नहीं पहुचाय जा सकती है | बहुकोशिकीय जीवो में ऑक्सीजन बहुत आवश्यक होता है | बहुकोशिकीय जीवो की संरचना अति जटिल होती है | अतः प्रत्येक अंग को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है | जो विसरण क्रिया नहीं पूरी कर सकती है |

Q2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धरण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
उत्तर :
सजीव वस्तुए निरंतर गति करती रहती है | चाहे वे सुप्त अवस्था में ही हो | बाह्य रूप से वे अचेत दिखाई देते है | उनके अणु गतिशील रहते है | इससे उनके जीवित होने का प्रमाण मिलता है |

Q3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर :
जीवो को शारीरिक वृद्धि के लिए बाहर से अतिरिक्त कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है | पृथ्वी पर जीवन कार्बन अणुओं पर आधारित है | अतः यह खाद्य पदार्थ कार्बन पर निर्भर है | ये कार्बनिक यौगिक भोजन का ही अन्य रूप है | इनमे ऑक्सीजन व कार्बन – डाइआक्साइड का आदान – प्रदान प्रमुख है | इसके अतिरिक्त जल व खनिज लवण अन्य है | हरे – पौधे इन कच्चे पदार्थ साथ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्टार्च का निर्माण होता है |

Q4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे ?
उत्तर :
अनेक जैविक क्रियाएँ जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक है जैसे : पोषण , गति , श्वसन , वृद्धि एवं उत्सर्जन |

पेज – 111 

Q1. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर है?
उत्तर : 

Q2. प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
उत्तर :

  • जल – पौधे की जडे भूमि से जल प्राप्त करती है |
  • कार्बन – डाइआक्साइड – पौधे इसे वायुमंडल से रंध्रो द्वारा प्राप्त करते हैं |
  • क्लोरोफिल – हरे पत्तो में क्लोरोप्लास्ट होता है , जिसमे क्लोरोफिल मौजूद होता है |
  • सूर्य का प्रकाश – सूर्य द्वारा इसे प्राप्त करते है |

Q3. हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
उत्तर :
हमारे आमाशय में हाईडरोक्लोरिक अम्ल उपस्थित होता है |यह अम्ल अमाशय में अम्लीय माध्यम का निर्माण करता है | इसी की मदद से एंजाइम अपना कार्य करता है | HCl अम्ल हमारे भोजन में उपस्थित रोगाणुओं को नष्ट कर देता है |  HCl अम्ल आमाशय में भोजन को पचाने में सहायता करता है |

Q4. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है?
उत्तर :
पाचन एंजाइम जटिल भोजन को सरल ,  सूक्ष्म तथा लाभदायक पदार्थ में बदल देता है | इस प्रकार से सरल पदार्थ छोटी आंत द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है |

Q5. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्रा को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर :
पचा हुआ भोजन , क्षुद्रांत में अवशोषित होता है | क्षुद्रान्त्र में हजारो सूक्ष्म , अन्गुलिनुमा विलाई होते है इसी कारण इनका आन्तरिक क्षेत्रफल बढ़ जाता है | क्षेत्रफल के बढ़ने से अवशोषण भी बढ़ जाता है | यह अवशोषित भोजन रूधिर में पहुचता है |

पेज – 116 

Q1. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
उत्तर :
वातावरण में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है जो स्थलीय  जीवो  द्वारा   आसानी  से ली जाती  है परन्तु जल में ऑक्सीजन की सूक्ष्म मात्रा होती है तथा वह जल में मिला होता है अत: जलीय जीव इस मिले ऑक्सीजन को लेने के लिए काफ़ी गति से साँस लेते है तथा संघर्ष करते है |

Q2. ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवो में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
उत्तर :

मासपेशियो में ग्लूकोज ऑक्सीजन कि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीकृत हो ऊर्जा प्रदान करता है तथा ऑक्सीजन कि कम मात्रा होने पर विशलषित होता है तथा लैकिटक अम्ल बनाता है |जीवो कि कोशिकाओ में ऑक्सीकरण पथ निम्न है |

  1. वायवीय श्वसन : इस प्रकम में ऑक्सीजन , ग्लूकोज को खंडित कर जल तथा CO2  में  खंडित कर देती है | ऑक्सीजन की पयार्प्त मात्रा में  ग्लूकोज विश्लेषित होकर 3 कार्बन परमाणु परिरुवेट के दो अणु निर्मित करता है |
  2. अवायवीय  श्वसन : ऑक्सीजन कि अनुपस्थिति में यीस्ट में किण्वन क्रिया होती है तथापायरूवेट इथेनाल व CO2 का निमार्ण होता है |
  3. ऑक्सीजन की कमी में लेकिटक अम्ल का निमार्ण होता है जिससे मासपेशियो में कैम्प आते है |

Q3. मनुष्यो में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर :
मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा काबर्न – डाइऑक्साइड के परिवहन को श्वसन कहते है | यह प्रक्रिया फैफडो द्वारा संपन्न कि जाति है |फैफडो में साँस के द्वारा पहुची हुई वायु में से हीमोग्लोबिन  (लाल रक्त कण ) ऑक्सीजन को ग्रहण कर के शरीर की सभी कोशिकाओ तक पहुचता है | इस प्रकार ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग तक पहुचता है | इसी प्रकार CO2  जो हमारे शरीर में ग्लूकोज के खंडित होकर ऊर्जा में बदलने पर बनती है |यह CO2 रक्त के सपर्क में आने पर उसके प्लाजमा में घुल जाती है | यह CO2  प्लाज़मा के द्वारा पूरे शरीर से पुन : रक्त से वायु में चली जाती है और अतः में नासद्रवारा से बाहर कर दी जाती है |

Q4. गैसो के विनिमय के लिए मानव-फुफ्फुस में अध्कितम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
उत्तर :
मानव फुफ्फुस छोटी -छोटी नलियों में बटा होती है | श्वसनी श्वसनिकाओ के बाद अत में कुपिकाए होती है जिनकी सरचना गुब्बरो के समान होती है | कुपिकाए ही गैसों के परिवहन को सरल बनाती है तथा एक विशाल क्षेत्र

पेज – 122 

Q1. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
उत्तर :
मानव में वहन तंत्र के प्रमुख घटक है : हृदय , रूधिर तथा रूधिर वाहिकाए |

  1. हृदय : हृदय एक पम्प की तरह रक्त का शरीर के विभिन्न अंगो से आदान -प्रदान करता है
  2. रूधिर : इनमे तीन रक्त कण होते है |इनका तरल  माध्यम प्लाज्मा है |रक्त शरीर  मे CO, भोजन ,जल , ऑक्सीजन ,तथा अन्य पर्दाथ का वहन करती है | RBC कोशिकाओं  CO2 तथा ऑक्सीजन गैसों तथा अन्य पदार्थ का वहन करता है | WBC शरीर में बाहर से आए जीवाणुओं से लड़कर शरीर को रोग मुक्त करता है | प्लेटलेट्स चोट लगने पर रक्त को बहने से रोकता है

 Q2. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुध्रि को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर :
स्तनधारी तथा पक्षियों को अधिक उर्जा की आवश्यता होती है जो ग्लूकोज के  खंडित हिने पर प्राप्त होती है  ग्लूकोज  के  खंडन के लिए ऑक्सीजन की  आवश्यता होती है  ऑक्सीजनित  तथा विऑक्सीजनित रक्त को अलग करके ही शरीर कि इतनी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध करा सकती है |

Q3. उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
उत्तर :
उच्च संगठित पादप में वहन  तंत्र  के प्रमुख घटक है :

  1. जाइलम ऊतक
  2. फ्लोएम ऊतक

Q4. पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
उत्तर:
पादप में जल और खनिज लवण का वहन जाइलम ऊतक करता है | जड़ो की कोशिकाए मृदा के अंदर होती है तथा वह आयन का आदान – प्रदान करती है | यह जड़ और मृदा में जड़ के आयन में एक अंतर उत्पन्न करता है | इस अंतर को समाप्त करने के लिए जल गति करते हुए जड़ के  जाइलम  में जाता है और और जल के स्तभ का निमार्ण करता है , जो लगातार  ऊपर की ओर धकेला जाता है | यह दाब जल को ऊपर की तरफ पहुचा नही सकता है | पत्तियो के द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा जल की हानि होती है , जो जल को जड़ो में उपस्थित कोशिकाओ द्वारा खीचता है | अतः  वाष्पोत्सर्जन कर्षण  जल की गति के लिए महत्वपूर्ण बल होता है |

Q5. पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है?
उत्तर : पत्तिया भोजन तैयार करती  है | पात्तियो से भोजन स्थानांतरण पूरे पौधे में फ्लोएम वाहिकाए करती है |

पेज – 124 

Q1. वृक्काणु (नेफॉन ) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर : 

Q2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने  लिए पादप किन विधियो का उपयोग करते हैं।
उत्तर :
उत्स्जी उत्पाद से छूटकारा पाने के लिए निम्न विधिया है :

  1. प्रकाश -सश्लेषण में पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करते है तथा कार्बन – डाइआक्साइड श्वसन के लिए रंध्रो द्वारा उपयोग में लाते है |
  2. पौधे अधिक संख्या में उपस्थित जल को वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा कम कर सकते है |
  3. पौधे कुछ अपशिष्ट पदार्थ को अपने आस – पास के मृदा को उत्सर्जित कर देते है |

Q3. मूत्रा बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मनुष्य द्वारा पीया जाने वाले पानी व शरीर द्वारा अवशोषण पर मूत्र की मात्रा निर्भर करती है | कम पानी पीने पर मूत्र की मात्रा कम होती है  कुछ हार्मोन इसे अपने नियंत्रण में रखते है|यूरिया तथा यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के लिए भी जल की मात्रा बढ़ जाती है | अत : अधिक मूत्र उत्सर्जित होता है |

अभ्यास

Q1. मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है जो संबंधित है
(a)पोषण               
(b)श्वसन            
(c)उत्सर्जन            
(d)परिवहन
उत्तर :
(c)उत्सर्जन |

Q2. पादप में जाइलम उत्तरदायी है
(a) जल का वहन                
(b)भोजन का वहन              
(c) अमीनो अम्ल का वहन  
(d)ऑक्सीजन का वहन
उत्तर :
(a) जल का वहन |

Q3. स्वपोषी पोषण के  लिए आवश्य्क
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल                
(b) क्लोरोपिफल
(c)सूर्य का प्रकाश                                      
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर :
(d) उपरोक्त सभी |

Q4. पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है
(a)कोशिकाद्रव्य
(b) माइटोकॉन्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केद्रक
उत्तर :
(b) माइटोकॉन्ड्रिया |

Q5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर :
वसा का पाचन आहारनाल के क्षुद्रांत में होता है | आमाशय में लाइपेज उन पर क्रिया करता है तथा वसा को खंडित कर देते है | इसके पश्चात क्षुद्रांत में यकृत द्वारा स्त्रावित बाइल रस वसा को इमल्सीफाई करता है | अग्नाशय रस इस खंडित वसा को वसीय अम्ल और गिल्सरोल में बदल देता है  इस प्रकार वसा क्षुद्रांत में पाचित हो जाती है |

Q6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर:
मुह में उपस्थित लार ग्रंथिया लार रस को स्त्रावित करती है | इसमें सेलाइवरी एमाईलेज एंजाइम होता है | जो स्टार्च को माल्टोज शर्करा में बदल देता है | इसी कारण कई बार अधिक चबाने पर भोजन मीठा लगने लगता है |

Q7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन सी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं?
उत्तर :
पृथ्वी पर केवल हरे – पौधे स्वपोषी होते है जो अपना भोजन स्वयं बनाते है | इसके लिए कुछ परस्थितियो कि आवश्यकता पड़ती है जैसे :

  1. पर्याप्त मात्रा में जल जो जड़े अवशोषित करती है |
  2. सूर्य का प्रकाश व ऊर्जा |
  3. कार्बन डाइआक्साइड गैस |

Q8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर हैं? कुछ जीवो के नाम लिखिए जिनमे  अवायवीय श्वसन होता है |
उत्तर :
वायवीय श्वसन :

  1. यह वायु की उपस्थिति में होता है |
  2. ग्लूकोज पूर्णतः विखंडित होता है |
  3. इसके अंतिम उत्पाद : CO2 , जल तथा ऊर्जा है |
  4. उदाहरण : सभी उच्च जीवधारी |

अवायवीय श्वसन :

  1. यह वायु की अनुपस्थिति में होता है |
  2. ग्लूकोज का आंशिक विखंडित होता है |
  3. इसके अंतिम उत्पाद : इथाइल एल्कोहॉल व CO2 |
  4. उदाहरण : यीस्ट , फीताकृमि |

Q9. गैसो  के अध्कितम विनिमय के लिए किस प्रकार अभिकल्पित हैं?
उत्तर :
कूपिकाए अपने गुब्बारेनुमा आकार के कारण वायु के आदान – प्रदान को सरल बनाती है और सतही क्षेत्रफल की वृद्धि करती है | वायु भरने पर ये कूपिकाए फ़ैल जाती है तथा  फुफ्फुस में परिवर्तित हो जाती है |

Q10. हमारे शरीर में  हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर :
हीमोग्लोबिन हमारे शरीर में ऑक्सीजन का वहन करता है | लाल रक्त कण में यदि इनकी मात्रा कम हो जाती है तो शरीरं के अंगो को सुचारू रूप से ऑक्सीजन नहीं मिल पता है | जिससे भोजन का ऑक्सीकरण पूर्णतः नहीं हो पाता , जिससे ऊर्जा में भी कमी आती है और थकावट उत्पन्न होती है | इसकी कमी से  व्यक्ति एनीमिया से पीड़ित हो जाता है|

Q11. मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर :
मानव हृदय में रक्त दो बार संचरित होता है | इसके दोहरा परिसंचरण कहते है | इसी कारण ओक्सीजनित और विओक्सीजनित रूधिर एक – दुसरे से अलग रहता है | यदि ये बंटवारा न हो तो दोनों प्रकार के रक्त मिल जाएंगे और अंगो को पूर्ण रूप से ऑक्सीजन नहीं मिल  पाएँग |

Q12. जाइलम तथा फ्रलोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
उत्तर :
जाइलम द्वारा पदार्थो का वहन : 

  1. इसमें जल एवं खनिज लवण केवल उपरिमुखी दिशा में संवाहित होते है |
  2. इसमें जल तथा लवण का संवहन दाब तथा वाष्पोत्सर्जन कर्षण द्वारा होता है |

 फ्लोएम द्वारा पदार्थो का वहन :

  1. इसमें भोजन , अमीनो अम्ल का संवहन दोनों दिशाओ में उपरिमुखी तथा अधोमुखी होता है |
  2. इसमें ATP ऊर्जा का प्रयोग होता है |

Q13. फुफ्फुस में कुपिकाओ  की तथा वृक्क में  वृक्काणु की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना
कीजिए।
उत्तर :
कूपिका : 

  1. कूपिका शुद्ध व अशुद्ध वायु का वहन करती है |
  2. कूपिकाओ का आकार छोटा होता है |
  3. कुपिका शरीर में रसायन CO2 गैस के रूप में निकलती है |

वृक्काणु : 

  1. वृक्काणु शुद्ध व अशुद्ध रुधिर वायु का वहन करती है |
  2. वृक्काणु लुपदार बड़े का आकार के होता है |
  3. वृक्काणु शरीर में नाइट्रोजन युक्त रसायन मूत्र के रूप में निकलती है |

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NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements (Hindi Medium)

NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Science in Hindi Medium. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 5 Periodic Classification of Elements.

Chapter 5. तत्वों के आवर्त वर्गीकरण

अध्याय-समीक्षा 

  • सन् 1800 तक केवल 30 तत्वों का पता चला था। इन सभी तत्वों की संभवतः भिन्न-भिन्न विशेषताएँ थीं।
  • जैसे-जैसे विभिन्न तत्वों की खोज हो रही थी, वैज्ञानिक इन तत्वों के गुणधर्मों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करने लगे।
  • सबसे पहले, ज्ञात तत्वों को धातु एवं अधातु में वर्गीकृत किया गया। जैसे-जैसे तत्वों एवं उनके गुणधर्मों के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता गया, वैसे-वैसे उन्हें वर्गीकृत करने के प्रयास किए गए।
  • सन् 1817 में जर्मन रसायनज्ञ, वुल्फगांग डॉबेराइनर ने समान गुणधर्मों वाले तत्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया। उन्होंने तीन-तीन तत्व वाले कुछ समूहों को चुना एवं उन समूहों को त्रिक कहा |
  • डॉबेराइनर ने बताया कि त्रिक के तीनों तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु द्रव्यमान, अन्य दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है। उदाहरण के लिए लिथियम (Li) सोडियम (Na) एवं पोटैशियम (K) है |
  • डॉबेराइनर की त्रिक में तत्वों के वर्गीकरण की यह पद्धति सफल नहीं रही क्योंकि उस समय तक ज्ञात तत्वों में केवल तीन त्रिक ही ज्ञात कर सके थे।
  • डॉबेराइनर ने ही सबसे पहले प्लैटिनम को उत्प्रेरक के रूप में पहचाना तथा समान त्रिक की खोज की जिससे तत्वों की आवर्त सारणी का विकास हुआ।
  • सन् 1866 में अंग्रेज़ वैज्ञानिक जॉन न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया।
  • न्यूलैंड्स का अष्टक नियम: “प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के गुणधर्म के समान हैं |”
  • न्यूलैंड्स के अष्टक में लीथियम एवं सोडियम के गुणधर्म समान थे। सोडियम, लीथियम के बाद आठवाँ तत्व है। इसी तरह बेरिलियम एवं मैग्नीशियम में अधिक समानता है।
  • ऐसा देखा गया कि अष्टक का सिद्धांत केवल कैल्सियम तक ही लागू होता था, क्योंकि कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व से नहीं मिलता।
  • न्यूलैंड्स ने कल्पना की कि प्रकृति में केवल 56 तत्व विद्यमान हैं तथा भविष्य में कोई अन्य तत्व नहीं मिलेगा। लेकिन, बाद में कई नए तत्व पाए गए जिनके गुणधर्म, अष्टक सिद्धांत से मेल नहीं खाते थे।
  • अपनी सारणी में इन तत्वों को समंजित करने के लिए न्यूलैंड्स ने दो तत्वों को एक साथ रख दिया और कुछ असमान तत्वों को एक स्थान में रख दिया।
  • इस प्रकार, न्यूलैंड्स अष्टक सिद्धांत केवल हल्के तत्वों के लिए ही ठीक से लागू हो पाया।
  • तत्वों के वर्गीकरण का मुख्य श्रेय रूसी रसायनज्ञ डमित्राी इवानोविच मेन्डेलीफ को जाता है। तत्वों की आवर्त सारणी के प्रारंभिक विकास में उनका प्रमुख योगदान रहा। उन्होंने अपनी सारणी में तत्वों को उनके मूल गुणधर्म, परमाणु द्रव्यमान तथा रासायनिक गुणधर्मों में समानता के आधार पर व्यवस्थित किया।
  • जब मेन्डेलीफ ने अपना कार्य आरंभ किया तब तक 63 तत्व ज्ञात थे। उन्होंने तत्वों के परमाणु द्रव्यमान एवं उनके भौतिक तथा रासायनिक गुणधर्मों के बीच संबंधों का अध्ययन किया |
  • रासायनिक गुणधर्मों के अंतर्गत मेन्डेलीफ ने तत्वों के ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन के साथ बनने वाले यौगिकों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन का इसलिए चुनाव किया क्योंकि ये अत्यंत सक्रिय हैं तथा अधिकांश तत्वों के साथ यौगिक बनाते हैं। तत्व से बनने वाले हाइड्राइड एवं ऑक्साइड के सूत्र को तत्वों के वर्गीकरण के लिए मूलभूत गुणधर्म माना गया।

पाठगत-प्रश्न:

पेज – 91

1. क्या डॉबेराइनर के त्रिक, न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तंभ में भी पाए जाते हैं? तुलना करके पता कीजिए।
उत्तर : हाँ , त्रिक  न्यूलैंड्स के अष्टक के स्तंभ में भी मिलते है | उदहारण :- Li , Na व K |

2. डॉबेराइनर के वर्गीकरण की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर :  डॉबेराइनर केवल तीन तत्वों के त्रिक को उस समय पहचान सके एवं सभी तत्वों का वर्गोंकरण उनके त्रिक के अनुसार नहीं हो सका |

3. न्यूलैंड्स के अष्टक सिद्धात की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर :  न्यूलैंड्स का अष्टक  सिद्धात कैल्सियम तक केव परमाणु भर वाले तत्वों का वर्गोंकरण कर पाया |

पेज – 94

1. मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी का उपयोग कर निम्नलिखित तत्वों वेफ ऑक्साइड के सूत्र का अनुमान कीजिए: K,C,Al,Si,Ba |
उत्तर : K – K2O , O – O2 , Al – Al2O2 ,Si – SiO2 , Ba – BaO |

2. गैलियम के अतिरिक्त, अब तक कौन-कौन से तत्वों का पता चला है जिसके लिए मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी में खाली स्थान छोड़ दिया था? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर : स्कैंडियम व जर्मेनियम |

3. मेन्डेलीफ ने अपनी आवर्त सारणी तैयार करने के लिए कौन सा मापदंड अपनाया?
उत्तर :  मेन्डेलीफ ने तत्वों को उनके परमाणु के अनुसार अलग किया | उनहोंने एक समान गुणों वाले तत्वों को एक समूह में रखने का प्रयास किया |

4. आपके अनुसार उत्कृष्ट गैसों को अलग समूह में क्यों रखा गया?
उत्तर :
 उत्कृष्ट गैसों अक्रियाशील होती है अत: अलग वर्ग में रखा गया |

पेज – 100

1. आधुनिक आवर्त सारणी द्वारा किस प्रकार से मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी की विविध विसंगतियों को दूर किया गया?
उत्तर :

  1. आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों को उनके परमाणु क्रमांकों के अनुसार अलग किया गया | हाइड्रोजन को प्रथम समूह में स्थान दिया गया |
  2. आवर्त सारणी में तत्वों की सिथति से उनकी रासायनिक  अभिक्रियाशीलता का पता चलता है |
  3. तत्वों को उनके भार के अनुसार भारी व हल्के अलग-अलग क्रम में रखा गया |

2. मैग्नीशियम की तरह रासायनिक अभिक्रियाशीलता दिखाने वाले दो तत्वों के नाम लिखिए? आपके चयन का क्या आधर है?
उत्तर : बैरीलियम (Be) तथा  कैल्सियम (Ca) दोनों ही मैग्नीशियम की तरह  अभिक्रियाशीलता दर्शाते है | दोनों के ही बाह्य किश में 2 संयोजी इलेक्ट्रॉन होते है |Be(2,2) तथा Ca(2,8,8,2)|

3. के नाम बताइएः
(a) तीन तत्वों जिनके सबसे बाहरी कोश में एक इलेक्ट्रॉन उपस्थित हो।
(b) दो तत्वों जिनके सबसे बाहरी कोश में दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित हों।
(c)तीन तत्वों जिनका बाहरी कोश पूर्ण हो।

उत्तर :
(a) लिथियम (Li) , सोडियम (Na) , पोटैशियम (K) |
(b) मैग्नीशियम (Mg) ,  कैल्सियम (Ca) |
(c)  निऑन (Ne) , आर्गन (Ar) , क्रिप्टोंन (Kr) |

4.
(a) लीथियम, सोडियम, पोटैशियम, ये सभी धातुएँ जल से अभिक्रिया कर हाइड्रोजन गैस मुक्त करती हैं। क्या इन तत्वों के परमाणुओं में कोई समानता है?
(b) हीलियम एक अक्रियाशील गैस है जबकि निऑन की अभिक्रियाशीलता अत्यंत कम है। इनके परमाणुओं में कोई समानता है?

उत्तर :
(a) ‘ हाँ ‘ इन तत्वों के परमाणुओं में समानता है | इनके बाह्यतम कोष में केवल 1 इलेक्ट्रॉन है | इनकी संयोजकताएँ भी समान है |
(b) ‘ हाँ ‘ इनमें भी समानता है |  दोनों संयोजकता  ‘ o ‘ है तथा इनके बाह्यतम कोश पूर्ण है |

5. आधुनिक आवर्त सारणी में पहले दस तत्वों में कौन सी धातुएँ हैं?
उत्तर : लिथियम एवं बेरीलियम धातुएँ है |

6. आवर्त सारणी में इनके स्थान के आधार पर इनमें से किस तत्व में सबसे अधिक धात्विक अभिलक्षण की विशेषता है?
Ga , Ge , As , Se , Be |
उत्तर : Be |

अभ्यास

1. आवर्त सारणी में बाईं से दाईं ओर जाने पर, प्रवृत्तियों के बारे में कौन सा कथन असत्य है?
(a) तत्वों की धात्विक प्रकृति घटती है।
(b) संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है।
(c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।
(d) इनके ऑक्साइड अधिक अम्लीय हो जाते हैं।

उत्तर : (c) परमाणु आसानी से इलेक्ट्रॉन का त्याग करते हैं।

2. तत्व X, XCl2 सूत्र का वाला एक क्लोराइड बनाता है जो एक ठोस है तथा जिसका गलनांक अधिक है। आवर्त सारणी में यह तत्व संभवतः किस समूह के अंतर्गत होगा?
(a) NA
(b) Mg
(c) Al
(d) Si

उत्तर : (b) Mg |

3. किस तत्व में

(a)दो कोश हैं तथा दोनों इलेक्ट्रॉनों से पूरित हैं?
(b) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 2 है?
(c) कुछ तीन कोश हैं तथा संयोजकता कोश में चार इलेक्ट्रॉन हैं?
(d) कुछ दो कोश हैं तथा संयोजकता कोश में तीन इलेक्ट्रॉन हैं?
(e) दूसरे कोश में पहले कोश से दोगुने इलेक्ट्रॉन हैैं?

उत्तर :
(a) निऑन (Ne)
(b) मैग्नीशियम (Mg)
(c) सिलिकॉन (Si)
(d) बोरॉन (B)
(e) कार्बन (C)

4.
(a) आवर्त सारणी में बोरान के स्तंभ के सभी तत्वों के कौन से गुणधर्म समान हैं?
(b) आवर्त सारणी में फलुओरीन के स्तंभ के सभी तत्वों के कौन से गुणधर्म समान हैं?

उत्तर :
(a) सामान गुणधर्म :- 

  1. सभी तत्व धातुएँ है |
  2. ऊपर से नीचे जाने पर आकर एवं धात्विक गुण बढता जाता है |
  3. सभी विघुत के सुचालक होते है |

(b) सामान गुणधर्म :- 

  1. सभी तत्व अधातुएँ है तथा संयोजकता 7 होती है |
  2. सभी विघुत के कुचालक है |

5. एक परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8, 7 है।
(a) इस तत्व की परमाणु-संख्या क्या है?
(b) निम्न में किस तत्व के साथ इसकी रासायनिक समानता होगी? ;परमाणु-संख्या कोष्ठक में दी गई है |
N(7) , F(9) , P(15) , Ar(18) 

उत्तर :
(a) इसकी परमाणु संख्या 17 है |
(b) F(9) – 2,7 के साथ रासायनिक गुणों में समानता होगी |

6. आवर्त सारणी में तीन तत्व । A,B तथा C की स्थिति निम्न प्रकार है:
समूह 16       समूह 17
—                 —

    —                  A

    —                 —

    B                   C

अब बताइए कि:
(a) धातु है या अधातु।
(b)की अपेक्षा  अधिक अभिक्रियाशील है या कम?
(c) का साइज़  से बड़ा होगा या छोटा?
(d) किस प्रकार आयन, धनायन या ऋणायन बनाएगा?

उत्तर :
(a) A- अधातु है |
(b) C कम क्रियाशील है |
(c) C का आकार B से छोटा है
(d) तत्व A ऋणायन बनायेगा |

7. नाइट्रोजन (परमाणु-संख्या7)तथा परमाणु-संख्या 15के आवर्त सारणी के समूह 15 के तत्व हैं। इन दोनों तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए। इनमें से कौन सा तत्व अधिक ऋण विद्युत होगा और क्यों?

उत्तर : नाइट्रोजन की परमाणु संख्या 7 (2,5) है अत: यह अधिक विद्युत ऋणात्मक होगा | फॉस्फोरस और नाइट्रोजन दोनों ही अधातुएँ है परन्तु फॉस्फोरस 15 (2,8,5) नाइटोजन से नीचे की ओर आता है और इस प्रकार ऋणात्मक घटती है |

8. तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास का आधुनिक आवर्त सारणी में तत्व की स्थिति से क्या संबंध है?

उत्तर : तत्वों का उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के अनुसार वर्गोंकरण किया गया है | किसी तत्व की बाह्यतम कोश में उपसिथत इलेक्ट्रॉन से उसकी संयोजकता पता चलती है तथा कोशों की कुल संख्या उसकी आवर्त संख्या होत |

9. आधुनिक आवर्त सारणी में कैल्सियम (परमाणु-संख्या 20) चारों ओर 12, 19 21 तथा 38 परमाणु-संख्या वाले तत्व स्थित हैं। इनमें से किन तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्म कैल्सियम के समान हैं?

उत्तर : आवर्त सारणी में C(20) के चारों ओर 12,19,21 व 38 परमाणु संख्या वाले तत्व है | इनमें से परमाणु संख्या 21 (2,8,9,2) तथा परमाणु संख्या 38 (2,8,18,2) वाले तत्वों के रासायनिक व भौतिक गुणधर्म सामान होंगे |

10. आधुनिक आवर्त सारणी एवं मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी में तत्वों की व्यवस्था की तुलना कीजिए।

उत्तर :
आधुनिक आवर्त सारणी :-

  1. यह परमाणु संख्या के अनुसार क्रमित है |
  2. इसमें 18 वर्ग है |
  3. इनमें अक्रिय गैसों को 18वें वर्ग में रखा गया है |

मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी :-

  1. यह परमाणु द्रव्यमान पर आधारित है |
  2. इसमें 8 समूह है |
  3. इनमें अक्रिय गैसों को कोई स्थान नहीं मिला है |

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Science Chapter 5 are helpful to complete your homework.